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अथ धर्मकृत्याहारव्याधिघटिकादीनां वर्णनं नाम तृतीयोल्लासः ॥ 3 ॥
अथागमनोपरान्तमुपविश्यादि निर्देशं -
बहिःस्थोऽभ्यागतो गेहमुपविश्य क्षणं सुधीः । कुर्याद्वस्त्रपरावर्त देहशौचादि कर्म च ॥ 1 ॥
सुधीर पुरुष को कहीं से आकर अपने घर में क्षणभर बैठना चाहिए। इसके बाद ही वस्त्रादि परिवर्तन कर काया की शुद्धि के लिए स्नानदि कर्म करने चाहिए। जीवप्रभेदमाह -
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स्थूलसूक्ष्मविभागेन जीवाः संसारिणो द्विधा ।
मनोवाक्काययोगैस्तान् गृही हन्ति निरन्तरम् ॥ 2 ॥
संसार में दो प्रकार के जीव कहे गए हैं- स्थूल और सूक्ष्म । गृहस्थ मनुष्य सदैव ही मन, वचन और काया के योग से उनका हनन करते हैं।
धर्मबाधकवस्तुनामाह
पेषणी कण्डनी चुल्ली गर्गरी वर्धनी तथा ।
अमी पापकराः पञ्च गृहिणी धर्मबाधकाः ॥ 3 ॥
घर में चक्की, ऊखल, चूल्हा, गागर और मार्जनी या झाडू- इन पाँच वस्तुओं से पापोत्पादन (भी) होता है अर्थात् ये धर्म के कार्य में बाधक हैं।
गदितोस्ति गृहस्थस्य तत्पातकविघातकः ।
धर्मः सविस्तरो बुद्धैरश्रान्तं तं समाचरेत् ॥ 4 ॥
इन पातकों का नाशकर्ता केवलमेव धर्म ही है। ज्ञानी लोगों ने बहुत विस्तारपूर्वक प्रतिपादित किया है । सत्पुरुषों को उक्त धर्म का निरन्तर समाचरण करना चाहिए। दशलक्षणात्मकधर्मं
दया दानं दमो देवपूजा भक्तिगुरौ क्षमा ।
सत्यं शौचं तपोऽस्तेयं धर्मोऽयं गृहमेधिनाम् ॥ 5 ॥
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