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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 121
जिसके हाथ में गोठ-दामन (गोबन्धन स्थल व गाय के गले में बान्धने का धागा) का चिह्न हो, वह मनुष्य बहुत गौओं का स्वामी होता है और जिसके हाथ में कमडण्लु, ध्वज, कुम्भ व स्वस्तिक- ये चार चिह्न हों वह मनुष्य धनवान होता है। प्रतिरेखाधर्मरेखाश्च फलं
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अनामिकान्त्यपर्वस्था प्रतिरेखा प्रभुत्वकृत् ।
ऊर्ध्वा पुनस्तले तस्य धर्मरेखेयमुच्यते ॥ 77 ॥
अनामिका अङ्गुली के अन्तपर्व पर विद्यमान आड़ी रेखा प्रभुता प्रदायक होती है और उसी अनामिका के नीचे ऊर्ध्वरेखा हो तो वह धर्म रेखा कहलाती है। रेखाभ्यां मध्यमास्थाभ्यामाभ्यां प्रोक्तविपर्ययः । तर्जनीगृहबन्धान्तर्लेखा स्यात्सुखमृत्युदा ॥ 78 ॥
उपर्युक्त दोनों रेखाएँ यदि मध्यमा अङ्गुली के नीचे हों, तो वह मनुष्य दरिद्री और अधर्मी होता है और तर्जनी अङ्गुली व गृहबन्ध के मध्य में रेखा हो तो वह सुखपूर्वक मरण देने वाली होती है।
अङ्गष्ठपितृरेखान्तस्तिर्यग्रेखा
पदप्रदा ।
अपत्यरेखाः सर्वाः स्युर्मत्स्याङ्गुष्ठतलान्तरे ॥ 79 ॥
यदि अँगूठे और पिता की रेखा के मध्य में तिर्यक् रेखा हो तो वह पद व पदोन्नति देने वाली होती है। मत्स्य व अँगूठे के बीच की रेखाओं से सन्तति की जाननी चाहिए।
अङ्गुष्ठस्य तले यस्य रेखा काकपदाकृतिः ।
तस्य स्यात्पश्चिमे काले विपत्तिः शूलरोगतः ॥ 80 ॥ *
जिस हाथ में के अँगूठे के तले कौए के पाँव जैसी रेखा हो, तो वह मनुष्य अपनी अन्तिम अवस्था में शूल रोग से मरता है ।
श्रिष्टान्यङ्गलिमध्यानि
द्रव्यसञ्चयहेतवे। तानि चेच्छिद्रयुक्तानि त्यागशीलस्ततो नरः ॥ 81 ॥
चारों अङ्गुलियों की विभिन्नता यदि छिद्र रहित हो अर्थात् चारों अङ्गुलियाँ सम्मिलित सीधी जोड़ वाली और मध्य में छिद्र न दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति धनसम्पदा का बचत करता है और यदि मध्य में छिद्र दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति त्यागशील होता है ।
तर्जनीमध्यमारन्ध्रे
मध्यमानामिकान्तरे ।
अनामिकाकनिष्ठान्तश्छिद्रे सति यथाक्रमम् ॥ 82 ॥
* इसके बाद वीरमित्रोदय के 'लक्षणप्रकाश' में कहा गया है— अत्र हेमाद्रिणा आयूरेखामणिबन्धमध्ये प्रदेशिनीं प्रापिणीभिस्तिसृभिर्लेखाभिः शतमायुरित्युक्तम् । तच्चोदहृतबहुवचनविरुद्धत्वान्मूलानुपलम्भाच्चोपेक्षणीयम् ॥ (लक्षणप्रकाश पृष्ठ 78)