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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लास : : 129
ऐसा कई बार सुना भी जाता है कि 'दक्ष मनुष्य के किए बड़े औषध-प्रयोग: से कन्या विषमयी हुई ।' आगे विषकन्या के लक्षणों के सम्बन्ध में कहा जाएगा। विषकन्यालक्षणं
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यस्याः केशांशुकस्पर्शान्ग्लायन्ति कुसुमस्त्रजः । स्नानाम्भसि विपद्यन्ते बहवः क्षुद्रजन्तवः ॥ 126 ॥ म्रियन्ते मत्कुणास्तल्पे तथा यूकाश्च वासति । वातलेष्मव्यथामुक्ता सा च पित्तोदयान्विता ॥ 127 ॥ जिसके केश और वस्त्र के स्पर्श से फूलों के हार कुम्हला जाते हों; जिसके स्नान के पानी में बहुत से क्षुद्र जीवों का प्राणान्त हो जाता हो, जिसके बिस्तर में खटमलों की मौत हो जाती हो; जिसके वस्त्र में जुएँ भी मरती हों, जो कफ-वात विकार से मुक्त हो किन्तु जिसे पित्त विकार होता हो-ऐसी कन्या विष कन्या हो सकती है। जन्मकाले वारादिस्थित्यानुसारेणविचारं
भौमार्कशनिवाराणां वारः कोऽपि भवेद्यदि । तथाषाशतभिषकृत्तिकानां च सम्पदि ॥ 128 ॥ द्वादशी वा द्वितीया वा सप्तमी वा तिथिर्यदि । ततस्तत्र सुता जाता कीर्त्यते विषकन्यका ॥ 129 ॥
जिस स्त्री के जन्मकाल में शनि, रवि और मङ्गल - इन तीनों में से कोई वार हो; आश्लेषा, शतभिषा और कृत्तिका नक्षत्रों में से कोई एक हों और द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी - इन तीन तिथियों में कोई एक तिथि हो तब जन्म लेने वाली कन्या के विषकन्या होने की सम्भावना कही जाती है। "
चाणक्य, शुक्र, बृहस्पति आदि राजशास्त्रियों ने विषकन्याओं के लक्षण दिए हैं। संस्कृत के कई काव्य ग्रन्थों में विषकन्याओं पर विचार किया गया है।
** मुहूर्तकल्पद्रुम में विषकन्यायोग आया है। जब रविवार, द्वितीया तिथि और शतभिषा नक्षत्र हो; मङ्गलवार, सप्तमी तिथि और आश्लेषा नक्षत्र हो तथा शनिवार, द्वादशी तिथि और कृत्तिका नक्षत्र हो - ऐसे योग में कन्या उत्पन्न हुई हो तो वह विषाङ्गना कही जाती है। ऐसी कन्या परिग्रहण की दृष्टि से त्याज्य है, ग्रहण करने पर बहुदोष प्रदायक होती है— मन्दारसूर्ये यदि वारुणाहिवह्न्यर्क्षभद्रातिथयोऽत्र जाता। विषाङ्गना तां परिवर्जयेन्ना तत्सङ्गते स्युर्बहुलादिदोषाः ॥ ( मुहूर्तकल्पद्रुम 14, 51 ) यह मान्यता गणपति रावल ने भी दी है - सूर्यभौमार्किवारेषु भद्रातिथि शताभिधे । आश्लेषा कृत्तिका चेत्स्यात्तत्र जाता विषाङ्गना ॥ ( मुहूर्तगणपति 15, 73) जिस कन्या के जन्म लग्न में शत्रु क्षेत्र में पापग्रह हो तथा दो शुभग्रह भी हों तो वह विषकन्या होती है। इसी प्रकार लग्न में शनि, पाँचवें सूर्य एवं नवें मङ्गल हो तो भी विषाङ्गना होती है। विषकन्या दोष का परिहार करने के लिए सावित्रीव्रत करके पीपल से विवाह कराकर चिरञ्जीवी वर के लिए देना शुभ होता है- जनोर्लने रिपुक्षेत्रे संस्थितः पापखेचरः । द्वौ सौम्यावपि योगेऽस्मिन् सञ्जाता विषकन्यका । लग्ने शनैश्चरो यस्याः सुतेऽर्को नवमे कुज: । विषाख्या सापि नोद्वाह्या त्रिविधा विषकन्यकाः ॥ सावित्र्यादिव्रतं कृत्वा वैवध्वनिवृत्तये । अश्वत्थादिभिरुद्वाह्य दद्यात्तां चिरजीविने ॥ (तत्रैव 15, 74-76)