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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 133
न च ज्वरवती नृत्यशृथाङ्गी पथि विक्लवा । मासैकप्रसवा नारी काम्या षण्मासगर्भिणी ॥ 147 ॥
ज्वर से पीड़ित, नृत्य करने से शीतल अवयव की, चलने से थकी हुई, छह मास की गर्भवती और प्रसूति हुए जिसे एक ही मास हुआ हो-ऐसी स्त्री अभोग्या है । वृक्षावृक्षान्तरं गच्छन प्राज्ञैश्चिन्त्योऽत्रवानरः ।
मनो यत्र स्मरस्तत्र ज्ञानं वश्यकरं ह्यदः ॥ 148 ॥
सुज्ञ पुरुष का यह कर्तव्य है कि वह अपने मन की तुलना उस वानर से करे जो कि एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर कूदता है अर्थात् जैसे बन्दर एक वृक्ष छोड़कर दूसरे पर जाता है वैसे ही मन एक विषय रखकर दूसरे विषय पर जाता है। जहाँ मन जाता है, वहाँ स्मर या कामदेव साथ ही रहता है। इसलिए मन को वशीभूत रखना चाहिए। कामातुरस्त्रीलक्षणं -
कम्पनर्तनहास्याश्रु मोक्षप्रोच्चैः स्वरादिकम् ।
प्रमदा सुरतोन्मत्ता कुरुते तत्र निःसहा ॥ 149 ॥
काम विकार सहन करने में अशक्त हुई और रत्यर्थ उन्मत्त हुई स्त्री शरीर कम्पाती है; नाचती है; हँसती है; आँसू निकालती है और जोर से बोलती है इत्यादि लक्षणों से अपनी मनोदशा प्रकट करती है ।
इत्यमनन्तर निमित्तविचारं
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तान्ते
कस्माद्भण्टानादस्त्वनुत्थितः ।
येन तस्यैव पञ्चत्वं पञ्चमास्या ततो भवेत् ॥ 150 ॥
जो पुरुष सहवास करने के बाद बिना बजे ही घण्टे का निनाद सुनता हो, उसका पाँच महीने में मरण होता है, ऐसा जानना चाहिए ।
भोगकालविचारं -
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पक्षान्निदाघे हेमन्ते नित्यमन्यर्तुषु त्र्यहात् ।
स्त्रियं कामयमानस्य जायते न बलक्षयः ॥ 151 ॥
जो गृहस्थ ग्रीष्म ऋतु में पन्द्रहवें दिन, हेमन्त ऋतु में प्रतिदिन और अन्य ऋतुओं में तीसरे दिन सहवास करता है, उसका बल क्षीण नहीं होता | 151 ॥
त्र्यहाद्वसन्तशरदोः
पक्षाद्वर्षानिदाघयोः । सेवेत कामिनीं कामं हेमन्त शिशिरे बली ॥ 152 ॥
बली पुरुष को बसन्त और शरद- इन दोनों ऋतुओं में तीसरे दिन; वर्षा और ग्रीष्म ऋतुओं में पन्द्रहवें दिन तथा हेमन्त और शिशिर ऋतुओं में इच्छानुकूल सहवास करना चाहिए ।