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उच्छलद्भूलिचरणा सर्वस्थूलमहाङ्गलिः । बहिर्विनिपतत्पादा दीर्घपादप्रदेशिनी ॥ 99 ॥ विरलाङ्गुलिक स्थूल पृथू पादौ च विभ्रतीः । सशब्दगमना स्थूलगुल्फा स्वेदयुतांहिका ।। 100 ॥
अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 125
जो चलते समय पाँव से धूल उड़ाती हो; जिसके पाँव का अँगूठा दूसरी अङ्गुलियों से अधिक मोटा हो; जो चलते हुए आजू-बाजू बाहर रखती हो, जिसके पाँव का तर्जनी बहुत लम्बी हो; जिसके पाँव छूटी हुई अङ्गुली के मोटे और चौड़े हों; चलते हुए जिसके पैर में शब्द हो; जिसके जानु मोटे हों; जिसके पाँव पर पसीना बहुत आता हो (ऐसी कन्या सदोषा जाननी चाहिए)।
अन्यदप्याह
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उद्धपिण्डिका स्थूल जङ्घा वायसजङ्गिका । निर्मांसघटकच्छाय विशिष्टकृशजानुका ॥ 101 ॥ बहुधारप्रस्त्रविका शुष्कसकटकट्यपि । चतुर्विंशतितो न्यूनाधिकाङ्गलकटी नता ॥ 102 ॥ मृदङ्गयवकूष्माण्डो दरिकात्युच्चनाभिका । दधती वलितं रोमावर्तिनं कुक्षिमुन्नतम् ॥ 103 ॥
जिस स्त्री के पाँव की पिण्डल ऊँची और बन्धी हुई जैसी हो; जिसकी पिण्डलियाँ मांस रहित; घड़े के पैंदे जैसे; ढुलमुल; मोटे और कृश हों; जिसकी लघुनीति बहुत धारा वाली हो; जिसकी कमर सूखी ; तंग और चौड़ाई में 24 अङ्गुल से कम या अधिक हो, जिसका पेट मृदङ्ग; जौ या भूरे कद्दू जैसा हो; जिसकी नाभि बहुत ऊँची हो; जिसकी कुक्षी करचली वाली; केश की भँवरी वाली और ऊँची हो ( वह सदोषा होती है) ।
अन्यदपि .
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अष्टादशाङ्गुलन्यूनाधिकवक्षोरुहान्तरा ।
तिलकं लक्ष्म वा श्यामं दधाना वामके स्तने ॥ 104 ॥ कुचे वराङ्गेपार्श्वेऽपि वाम उच्चे मनाक् सति । नारीप्रसविनी नारी दक्षिणे च पर (नर! ) प्रसूः ॥ 105 ॥ सङ्कीर्णपृथुलप्रोच्च निर्मांसांसयुतापि च । स्थूलोच्चकुटिलस्कन्धा निम्ननिर्मांसकक्षिका ॥ 106 ॥
जिसके दोनों स्तनों के बीच 18 अङ्गुल से न्यूनाधिक अन्तर हो; जिसके बायें स्तन पर तिल अथवा कोई काला चिह्न हो (स्त्री का बायाँ स्तन बायीं योनि का भाग