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100 : विवेकविलास
स्तब्ध जैसा, वाष्प रहित, अन्दर से पानी छोड़ता हुआ, चन्द्रिका वाला और जिसका वर्ण, गन्ध और रस स्वाभाविक रूप के विपरीत हो गए, ऐसा भोजन विषयुक्त है, ऐसा जानना चाहिए।
सविषाणि क्षणादेव शुष्यन्ति व्यञ्जनान्यपि। .. क्वाथे तु ध्यामता फेनः सीमन्ता बुबुदास्तथा॥7॥.....
विषयुक्त व्यञ्जन (अवलेह, चोष्य, पेयादि) क्षण मात्र में सूख जाते हैं और यदि जहर वाला उबाला लिया हो तो वह काला पड़ जाता है, फेन आते हैं, धारियें पड़ जाती हैं और बुदबुदे उठते हुए दिखाई देते हैं।
जायन्ते राजयो नीला रसे क्षीरे च लोहिताः। स्युर्मद्यतोययोः कृष्णा दधि श्यामास्तु राजयः।।74॥
यदि रसादि पेय पदार्थ में विष हो तो नील वर्ण की धारियाँ पड़ती हैं। दूध में हो तो लाल वर्ण की धारियाँ, मद्य या पानी में हो तो काली धारियों पड़ती हैं और दही में हो तो श्याम वर्ण की धारियाँ दिखाई देने लगती हैं।
तळे तु नीलपीता स्यात्कपोताभा तु मस्तुनि। .. कृष्णा सौवीरके राजिघृते तु जलसन्निभा॥75॥
यदि विष मिश्रित छाछ हो तो उसमें नील जैसी और पीली धारियाँ पड़ती हैं। मस्तु (दही की तरी) में हो तो कपोत वर्ण जैसा उस पर आ जाता है। कॉजी में काली
और विषयुक्त घृत पर जल जैसी धारियाँ पड़ती हैं। फलौषधादीनां परीक्षणं
द्रवौषधे तु कपिला क्षौद्रे च कपिला भवेत्। तैलैऽरुणा वसागन्धिः पाक आने फले क्षणात्॥76॥
यदि प्रवाही औषध और शहद विषयुक्त हो तो उनमें कपिल रेखाएँ पड़ती हैं, तेल में विष हो तो लाल धारियाँ और वसा जैसी दुर्गन्ध आती है। इसी प्रकार कच्चे आमादि फल में विष हो तो वे फल तत्काल पकता है।
सपाकानां फलानां च प्रकोपः सहसा तथा। जायेत म्लानिरार्द्राणां सङ्कोचश्च विषादिह॥77॥ इसी प्रकार यदि परिपक्व फलों में विष हो तो वे तुरन्त फट जाते हैं, सड़ भी
* मत्स्यपुराण में विषयुक्त पदार्थों के लक्षण एवं उनसे बचाव के उपायों का वर्णन इसी प्रकार से हुआ
है। यथा- व्यापनरसगन्धं च चन्द्रिकाभिस्तथा युतम् ॥ व्यञ्जनां तु शुष्कत्वं द्रवाणां बुद्दोद्रवः । ससैन्धवानां द्रव्याणां जायते फेनमालिता॥ शस्यराजिश्च ताम्रा स्यात्रीला च पयस्तथा। कोकिलाभा च मद्यस्य तोयस्य च नृपोत्तम ॥ धान्याम्लस्य तथा कृष्णा कपिला कोद्रवस्य च। मधुश्यामा च तक्रस्य नीला पीता तथैव च ॥ (मत्स्य. 219, 23-26)