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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 109 निद्रासमयमासाद्य ताम्बूलं मुखतस्त्यजेत्। ललाटात्तिलकं कण्ठान्माल्यं तल्पात्तु योषितम्॥10॥
निद्रा आगमन के समय मुख से ताम्बूल को थूक देना चाहिए। इसी प्रकार ललाट से तिलक, कण्ठ में पड़ी हुई माला एवं शय्या से स्त्री को त्याग देना चाहिए।"
प्रज्ञां हरति ताम्बूलमायुहरति पौण्डूकम्। भोगिस्पर्शकरं माल्यं बलहानिकराः स्त्रियः॥11॥
निद्रा काल में यदि मुँह में ताम्बूल हो तो वह बुद्धि का नाश करता है; कपाल पर तिलक हो तो आयुष्य हरण करता है; गले में माला हो तो उसे सर्प आकर स्पर्श करे ऐसा सम्भव है और औरतें पास हो तो बल की हानि होती है। इत्यमनन्तर सामुद्रिकशास्त्रानुसारेण वरलक्षण -
वपुः शीलं कुलं वित्तं वयो विद्या सनाथता। एतानि यस्य विद्यन्ते तस्मै देया निजा.सुता॥ 12॥
कन्या के पिता को यह निश्चित करना चाहिए कि जिसका शरीर, शील, कुल, धन, वय और विद्या- ये छह चीजें अच्छी हों और जिस पर बड़े लोगों का वरदहस्त हो, उसको अपनी कन्या देनी चाहिए।
मूर्खनिर्धनदूरस्थ शूरमोक्षभिलाषिणाम्। त्रिगुणाधिकवर्षाणां न देया कन्यका बुधैः ।। 13॥
ज्ञानी मनुष्य को अपनी कन्या कभी मूर्ख, निर्धन, दूरस्थ, शूर, मोक्षाकांक्षी और पुत्री से तीन गुनी आयु से अधिक वर्ष के वर को नहीं देनी चाहिए। अङ्गावयवप्रमाणमाह -
वक्षो वक्त्रं ललाटं च विस्तीर्णं शस्यते त्रयम्। गम्भीर त्रितयं शस्यं नाभिः सत्त्वं स्वरस्तथा॥14॥
पुरुष की छाती, मुँह और कपाल- ये तीनों चौड़े हों तो प्रशंसनीय हैं और नाभि, स्वभाव और स्वर- ये तीन गम्भीर हों तो प्रशस्त जानने चाहिए।
कण्ठः पृष्ठं च लिङ्गं च जङ्घायोर्युगलं तथा। चत्वारि यस्य ह्रस्वानि पूजामानोति सोऽन्वहम्।। 15॥
जिस पुरुष के कण्ठ, पीठ, लिङ्ग और दोनों जवाएँ-इतने अवयव छोटे हों तो वह पुरुष नित्य पूजा जाता है। * 'निद्रासमयमासाद्य ताम्बूलं वदनात्त्यजेत्। पर्यात्प्रमदां भालात्पुण्ड्रं पुष्पाणि मस्तकात्' पाठान्तर
(तुलनीय- भगवन्तभास्कर, आचारमयूख)। **धर्मसिन्धु में आया है- निद्राकाले ताम्बूलं मुखात् स्त्रियं शयनाद् भालात्तिलकं शिरसः पुष्पं च त्यजेत्। (धर्म. 3, पू., क्षुद्रकालं)