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... अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 117 धन और आयुष्य परिपूर्ण होता है। यदि ये रेखाएँ बराबर न हो, तो उक्त बातों में बहुत अन्तर आता है।
उल्लङ्घयन्ते च यावन्त्योऽङ्गुल्यो जीवितरेखया। ... पञ्चविंशतयो ज्ञेयास्तावन्त्यः शरदां बुधैः॥55॥
करभ (कनिष्ठा के नीचे के भाग) से निकली आयुष्य रेखा जितनी अङ्गलियों को उल्लङ्घन कर जाए उतनी आयु की पच्चीसी है, ऐसा सुज्ञानियों को जानना चाहिए। . मणिबन्धोन्मुखा आयुर्लेखायां ये तु पल्लवाः।
सम्पदे ते बहिर्ये ते विपक्षेऽङ्गलिसम्मुखाः॥56॥
आयुष्य की रेखा से मणिबन्ध के सामने शाखा गई हों वे लक्ष्मी देने वाली और अङ्गलियों की ओर गई हों वे आपत्तिकारक जाननी चाहिए।
गत्वा मिलियोः प्रान्तं द्रव्यपित्रोश्च रेखयोः। गृहबन्धी विनिर्दिष्टो गृहभङ्गोऽन्यथा पुनः॥57॥
धन और पिता की रेखा यदि प्रान्त पर मिल जाए तो घर-परिवार अच्छी तरह से चले और यदि ये दो रेखाएँ न मिली हों तो घर भङ्ग होता है, ऐसा जानें। ऊवरखालक्षणसफलं
ऊर्खा रेखा मणेर्बन्धादूर्ध्वगा सा च पञ्चधा। अष्ठाश्रयिणी सौख्य राज्यलाभाय जायते॥58॥
मणिबन्ध से ऊँची गई हुई रेखा ऊध्वरेखा कहलाती है। यह पाँच प्रकार की होती है। इनमें से पहली मणिबन्ध से अंगुष्ठ तक जाती है, वह राज्य व सुख के लाभ के हेतु से कही है।
राजा राजसहशो वा तर्जनगितया तया। मध्यमां गतयाचार्यः ख्यातो राजाथ सैन्यपः ॥ 59॥
इसी प्रकार दूसरी मणिबन्ध से तर्जनी तक ऊध्वरेखा जाती है, उससे व्यक्ति राजा या राजा के समान ऋद्धिशाली होता है। तीसरी ऊर्ध्वरेखा मणिबन्ध से मध्यमा तक जाती है। उससे व्यक्ति आचार्य, प्रख्यात राजा अथवा सेनापति होता है।
अनामिका प्रयान्त्या तु सार्थवाहो महाधनः। - कनिष्ठा गतया श्रेष्ठाः सुप्रतिष्ठा भवेद्धवम्॥ 60॥
— इसी तरह चौथी मणिबन्ध से अनामिका को जाती है, इससे बड़ा धनवान सार्थवाह या चलित-व्यापारी होता है। पाँचवीं ऊर्ध्वरेखा मणिबन्ध से कनिष्ठा को जाती है, इससे व्यक्ति लोक में निश्चित ही उत्तम और प्रतिष्ठित होता है।