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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 115 बराबर जोड़ से शोभित हो तो प्रशंसा योग्य जाने और ढीला, हिलाते समय कट-कट शब्द करने वाला और हीन हो तो निर्धनता जैसे दुःख देने वाला कहिए। अङ्गललक्षणं
दीर्घनिर्मासपर्वाणः सूक्ष्मा दीर्घाः सुकोमलाः। सुघनाः सरला वृत्ताः स्त्रीन्नोरङ्गलयः श्रिये॥42॥
स्त्रियों और पुरुषों की अङ्गलियाँ लम्बी और मांस रहित जोड़ की सूक्ष्म, दीर्घ, मुलायम, घनी (सुदृढ़) सरल और गोल हो तो कल्याणकारी जाने।
यच्छन्ति विरलाः शुष्काः स्थूला वक्रा दरिद्रताम्।
शस्त्रघातं बहिर्नम्राश्चेटत्वं चिपिटाश्च ताः॥43॥ __यदि अङ्गलियाँ विभिन्न, शुष्क, स्थूलाकार और वक्र हों तो दरिद्रता तथा बाहर की ओर झुकी हुई हों तो शस्त्राघात और चपटी हों तो दासत्व देने वाली होती
अनामिकान्त्यरेखायाः कनिष्ठा स्याद्यदाधिका। धनवृद्धिस्तदां पुंसां मातृपक्षो बहुस्तथा॥44॥
जिस व्यक्ति की अनामिका की अंत रेखा से कनिष्ठिका अधिक लम्बी हो तो उसके धनवृद्धि और ननिहाल के अधिक पक्ष को बताती है।
मध्यमाप्रान्तरेखाया अधिकं तर्जनी यदि। प्रचुरस्तत्पितुः पक्षः श्रीश्च व्यत्ययतोऽन्यथा॥45॥
मध्यमा अङ्गली की अन्तिम रेखा से यदि तर्जनी अधिक लम्बी हो तो पिता का पक्ष सुदृढ़ और लक्ष्मी की प्रचुर कृपा होती है।
अङ्गष्ठस्यङ्गलीनां वा यद्यूनाधिकता भवेत्। धनैर्धान्यैस्तदा हीनो नरः स्यादायुषापि च॥46॥
अँगूठे और शेष चार अङ्गलियों में यदि न्यूनाधिकता हो तो ऐसा मनुष्य धन, धान्य और आयुष्य से हीन होता है।
मणिबन्धे यवश्रेण्यस्तिस्त्रश्चेत्तनृपो भवेत्। यदि ताः पाणिपृष्ठेऽपि ततोऽधिकतरं फलम्।।47॥
यदि मणिबन्ध पर तीन जौ की पंक्तियाँ हो तो ऐसा व्यक्ति राजा होता है। इसी प्रकार यदि जौ की पंक्तियाँ हाथ के पीछे भी हों तो वह राज्य से भी अधिक फल प्राप्त करता है।
द्वाभ्यां च यवमालाभ्यां राजमन्त्री धनी बुधः। एकया यवपक्त्या तु श्रेष्ठा बहुधनोऽचितः॥48॥