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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लास: : 113 पुरुष की दाहिनी ओर के जो उत्तम लक्षण कहे गए, वे स्त्रियों की और स्त्रीलग्न में उत्पन्न हुए पुरुष के भी वाम ओर उत्तम जानने चाहिए। कतिपय शास्त्रकार पुरुष के दाहिनी ओर खड्गादि से हुए घात को भी उत्तम बताते हैं। यदेव शुभमशुभं वा लक्षणं बलवत्तदेवफलदं
पुष्टं यदेव देहे स्याल्लक्षणं वाप्यलक्षणम्। इतरद्बाध्यते तेन बलवत् फलदं पुनः (भवेत्!)॥31॥
मनुष्य के देह पर जो भी शुभ अथवा अशुभ लक्षण प्रबलता" से हो, वह अन्य सब लक्षणों को प्रभावशून्य कर देता है और स्वयं प्रबल होने से फल प्रदाता होता है। अथ हस्तलक्षणं
मणिबन्धात्परः पाणिस्तस्य लक्षणमुच्यते। तत्र चाङ्गुष्ठ एकः स्याच्चतुस्रोऽङ्गुलयः पुनः॥32॥
मणिबन्ध से शरीर का जो भाग आया हो वह हाथ कहलाता है। उसका लक्षण अब कहता हूँ। हाथ में एक अंगूठा और चार दूसरी अङ्गलियाँ होती हैं।
नामान्यासां यथार्थानि ज्ञेयान्यङ्गुलितः क्रमात्। तर्जनी मध्यमानामा कनिष्ठा च चतुर्थिका॥33॥
अँगूठे की ओर से उन चारों अङ्गलियों के क्रम से नाम तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा होते हैं। (ये नाम अर्थानुसार रखे गए हैं। जैसे तर्जना करे तर्जनी; मध्यभाग में आई वह मध्यमा; जिसकी विशेष संज्ञा नहीं, वह अनामिका और जो सबसे छोटी होती है वह कनिष्ठा कहलाती है)।
अकर्मकठिनः पाणिर्दक्षिणो वीक्ष्यते नृणाम्।। वामभुवां पुनर्वामः स प्रशस्योऽतिकोमलः॥34॥
पुरुष का दाहिना हाथ कार्यादि करने से कठोर नहीं हुआ हो तो वह देखा जाता है और स्त्रियों का वाम हाथ देखा जाता है। यदि वह अति कोमल हो तो प्रशंसा करने योग्य होता है। . ..
* ग्रन्थकार ने यहाँ समुद्र कृत ग्रन्थों का स्मरण किया है। समुद्रतिलक, सामुद्रिकशास्त्र, अङ्गविद्या,
भविष्यपुराण, गरुडपुराण, बृहत्संहिता और उस पर भट्टोत्पलीय विवृत्ति, गर्गसंहिता, बार्हस्पत्यसंहिता, समाससंहिता, मुहूर्ततत्त्व, जगन्मोहन, हस्तसञ्जीवनादि ग्रन्थों में यह विषय विवृत्त हैं। यहाँ विस्तार
भय के कारण अधिकोदाहरण नहीं दिए जा रहे हैं। **सामुद्रतिलक में कहा है- यल्लक्ष्म पुनः शुभमपि कररेखाप्रभृतिकं वसंवदति। बाह्याभ्यन्तरमपरं तत्र समुद्रेण निर्दिष्टम्॥ (लक्षणप्रकाश पृष्ठ 110)