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118 : विवेकविलास
गृहिणीबोधिनीरेखा -
आयुर्लेखाकनिष्ठान्तं लेखाः स्युर्गृहिणीप्रदाः । समाभिः शमशीला स्याद्विषमाभिः कुशीलिका ॥ 61 ॥
आयुष्य की रेखा से कनिष्ठा तक की जो रेखा होती है उसे स्त्रियों की जाननी चाहिए। यदि वह रेखा सम हो तो शीलवन्त स्त्री मिलेगी और विषम हो तो दुराचारिणी भार्या मिलती है।
भ्रातृभगिनीबोधिनीरेखादीनां
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आयुर्लेखावसानाभिर्लेखाभिर्मणिबन्धतः । स्वष्टाभिर्भ्रातरो ऽस्पष्टतराभिर्जामयः पुनः ॥ 62 ॥
मणिबन्ध से आयुष्य रेखा तक जितनी रेखाएँ स्पष्ट हों, व्यक्ति के उतने भाई जानना चाहिए और जितनी अस्पष्ट हों उतनी जामय (बहनें) जाननी चाहिए। अस्पष्टाभिरदीर्घाभिर्भ्रातृजाम्यायुषस्त्रुटि: ।
यवैरङ्गष्ठमूलस्थैस्तत्सङ्ख्याः सूनवो नृणाम् ॥ 63 ॥
भाई और बहन की रेखाएँ यदि अस्पष्ट और छोटी हों तो अपने भाई-बहनों का आयुष्य खण्डित जानना चाहिए और अंगुष्ठ के मूल से जितने जौ हों, उतने पुत्र जानना चाहिए।
यवानुसारेणविद्यादिफलं -
यवैरङ्गुष्ठमध्यस्थैर्विद्याख्यातिविभूतयः ।
शुक्लपक्षे तथा जन्म दक्षिणाङ्गुष्ठजैश्च तैः ॥ 64 ॥
अँगूठे के मध्य भाग में यदि जौ हों तो उससे विद्या, ख्याति और लक्ष्मी प्राप्त
होती है। ये जौ यदि दाहिने अँगूठे के मध्य भाग में हों तो उस मनुष्य का जन्म निश्चित ही मास के शुक्ल पक्ष में हुआ है, ऐसा जानना चाहिए।
कृष्णपक्षे नृणां जन्म वामाङ्गष्ठगतैर्यवैः । बहूनामथवैकस्य यवस्य स्यात्समं फलम् ॥ 65 ॥
बायें अँगूठे में यदि जौ हों तो उस व्यक्ति का जन्म कृष्णपक्ष का जानें। एक अथवा अधिक जौ हों तो उन सब का फल भी एक-सा होता है। मत्स्यमुखफलं
एकोऽप्यभिमुखः स्वस्य मत्स्यः श्रीवृद्धिकारणम् । सम्पूर्णौ किं पुनस्तौ द्वौ पाणिमूले स्थितौ नृणाम् ॥ 66 ॥
व्यक्ति के हाथ के मूल भाग में यदि एक ही मत्स्य सीधे मुँह का हो तो उससे
लक्ष्मी की वृद्धि होती है और यदि सम्पूर्ण मत्स्य हो तो फिर धन-वैभव का कहना