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114 : विवेकविलास
लाघ्यश्चोष्णोऽरुणोऽस्वेदोऽच्छिद्रः स्निग्धश्च मांसलः। भूक्ष्णस्ताम्रनखो दीर्घाङ्गलीको विपुलः करः॥35॥
गर्म, लाल, बिना पसीने का, छिद्र रहित, स्निग्ध, मांसल, कोमल, लाल नख से और लम्बी अङ्गलियों से शोभित विशाल हाथ उत्तम होता है।
पाणेस्तलेन शोणेन धनी नीलेन मद्यपः। . पीतेनागम्यनारीगः कल्माषेण धनोज्झितः॥ 36॥
जिस मनुष्य की हथेली लाल हो, तो वह धनवान होता है। नीलवर्ण हो तो मद्यपान करता है। पीतवर्ण हो तो अगम्य स्त्री के साथ विषय-भोग करता है और चित्र-विचित्र वर्ण हो तो दरिद्री होता है।
दानोनते तले पाणेनिने पितृधनोज्झितः। धनी सम्भूतनिने स्याद्विषमे निर्धनः पुनः॥37॥
यदि हथेली ऊँची हो तो ऐसा व्यक्ति दाता होता है। दबी हुई हो तो वह पिता के द्रव्य से रहित होता हैं। गहरी होने पर भी अच्छी रेखा से युक्त हो तो वह धनाढ्य होता है और यदि विषम (ऊँची-नीची) हथेली हो तो निर्धन होता है।
अरेखं बहुरेखं वा येषां पाणितलं नृणाम्। ते स्युरल्पायुषो निःस्वा दुःखिता नात्र संशयः॥38॥
जिसके हाथ में बिल्कुल रेखा नहीं हो अथवा हो तो बहुत-सी रेखाएँ हों, वह अल्यायुषी, दरिद्री और दुःखी होता है, इसमें कोई संशय नहीं है।
करपृष्ठं सुविस्तीर्णं पीनं स्निग्धं समुन्नतम्। लाघ्यं गूढशिरंन्हणां फणभृत्फणसन्निभम्॥39॥
जिस मनुष्य के हाथ में पीछे का भाग विस्तार वाला हो, पुष्ट, स्निग्ध, ऊँचा, भीतर की नसें नहीं दिखने से सुन्दर और सर्प के फन जैसा हो, तो वह प्रशंसा योग्य कहा जाना चाहिए।
विवर्णं परुषं रूक्षं रोमशं मांसवर्जितम्। मणिबन्धसमं निम्नं न श्रेष्ठं करपृष्ठकम्॥40॥
यदि मनुष्य के हाथ का पिछला भाग कान्ति रहित, कठिन, शुष्क, रोमयुक्त, बिना माँस का, और मणिबन्ध जितना दबा हुआ हो तो वह श्रेष्ठ नहीं होता है। मणिबन्धलक्षणं
पाणिमूलं दृढं गूढं श्राध्यं सुUिष्टसन्धिकम्। शूथं सशब्दं हीनं च निर्धनत्वादिदुःखदम्॥41॥ जिस मनुष्य का मणिबन्ध दृढ़, गुप्त (जिसमें अस्थियाँ न दीखती हों) और