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अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां
वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः॥5॥
अथ दिवसावसाने दीपदाननिर्देशं -
दीपंः प्रदक्षिणावर्तो निःप्रकम्पोऽतिभासुरः। आयतो घनमूर्तिश्च निःशब्दो रुचिरस्तथा॥1॥ चञ्चत्काञ्चनसङ्काश प्रभामण्डलमण्डितः। गृहालोकाय माङ्गल्यः कर्तव्यो रजनीमुखे॥2॥(युग्मम्)
जब सन्ध्याकाल हो जाए तब प्रकाश के लिए यह कर्तव्य कहा गया है कि नित्य मङ्गलमय दीपक जलाना चाहिए। दीपदान के अवसर पर ध्यान रखना चाहिए 'कि वह दाहिनी ओर आवृत्तिमान, अतिशत दैदीप्यमान, दीर्घकाय, अच्छी ज्योतिप्रद, निःशब्द, रुचिर और स्वर्णिम प्रभा मण्डल से मण्डित होना चाहिए। निषिद्धदीपलक्षणं-...
सस्फुलिङ्गोऽल्पमूर्तिश्च वामावर्तस्तनुप्रभः। वातकीटाद्यभावेऽपि विध्यायंस्तैलवर्तिमान्॥3॥ विकीर्णार्चिः सशब्दश्च प्रदीपो मन्दिरस्थितः। पुरुषाणामनिष्टानि प्रसाधयति निश्चितम्॥4॥(युग्मम् )
स्फुलिङ्ग करने वाला, लघु आकार का, बायीं ओर आवृति वाला, अल्प प्रकाश देने वाला, पवन व पतङ्गादि का उपद्रव नहीं होने पर भी और तेल-बाती के होते हुए भी बुझ जाने वाला, बिखरी हुई ज्योति से युक्त और तड़-तड़ शब्द करने वाला- ऐसा दीपक जिस घर में किया जाता है, वह वहाँ रहने वाले मनुष्य को निश्चित ही अनिष्ट सूचित करता है। . रात्रावसरे निषिद्धकर्माह -
रात्रौ म देवतापूजा स्नानदानाशनानि च। न वा खदिरताम्बूलं कुर्यान्मन्त्रं च नो सुधीः॥5॥