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106 : विवेकविलास
सूर्योढस्यातिथेस्तथ्यमातिथेयं विचक्षणैः। शयनस्थानपानीय प्रमुखैः कार्यमादरात्॥9॥
विचक्षण पुरुष चाहिए कि सूर्यास्त होने के अवसर पर आगन्तुक अतिथि का सत्कार, शय्या, स्थान, जलपान आदि से अच्छी तरह पाहुनाचार करे। उल्लासोपसंहरति
अहोऽतीते यामयुग्मे विधेयं यामार्थेषु प्रोक्तमित्थं चतुर्यु। अन्ताश्चित्तं चिन्त्यमेतच्च सम्यक् स्थेयः श्रेयः काम्यया क्षुण्णधीभिः॥10॥
इस तरह सूर्योदय से लगाकर मध्याह्न तक दो प्रहर का और मध्याह्न के बाद के दो प्रहर को मिलाकर चार अर्द्ध प्रहर का कृत्य कहा है। जिसे समग्र कल्याण की इच्छा हो उसे अपने चित्त में अच्छी तरह से इस पर विचार करना चाहिए। इति श्रीजिनदत्तसूरि विरचिते विवेकविलासे दिनचार्यायां चतुर्थोल्लासः॥4॥
इस प्रकार श्रीजिनदत्तसूरि कृत विवेकविलास में दिनचर्या का चतुर्थ उल्लास पूरा हुआ।