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86 : विवेकविलास गृह परिशुद्ध रखना और याचकों को सन्तुष्टिप्रद द्रव्य देना-ये उद्यम रूप वृक्ष के फल जानने चाहिए। उल्लासोपसंहरति -
इत्थं किल द्वितीयतृतीयप्रहरार्धकृत्यमखिलमपि। ... हृदि कुर्वन्तः सन्तः कृत्यविधौ नात्र मुह्यन्ति ॥ 115॥
इस प्रकार यहाँ सम्पूर्ण दूसरे प्रहर और तीसरे अर्द्ध प्रहर के समग्र कृत्यों का वर्णन किया गया है। जो सत्पुरुष इन सत्कृत्यों को हृदय में धारण करते हैं वे करणीय कृत्यों में कभी किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं होते हैं। इति श्रीजिनदत्तसूरि विरचिते विवेकविलासे दिनचर्यायां द्वितीयोल्लासः॥2॥
इस प्रकार श्री जिनदत्त सूरि विरचित 'विवेकविलास' में दिनचर्या का द्वितीय उल्लास पूरा हुआ।