________________
अथ धर्मकृत्याहारव्याधिघटिकादीनां वर्णनं नाम तृतीयोल्लासः : 97 यह कहा भी गया है- 'हे राजाधिराज अर्जुन! तुझे बहुत से व्यक्तियों का पोषण करना हो, तो भोजन के बाद भीगे हाथ से दोनों गालों को, दूसरे हाथ को और दोनों नेत्रों का स्पर्श मत करो परन्तु पिण्डली व जङ्घा को स्पर्श करना चाहिए। तथा च भोजनव्यवहारं-..
समानां जातिशीलाभ्यां स्वसाम्यधिक्यसंस्पृशाम्।। भोजनाय गृहे गच्छेद्गच्छेद्वेषवतां न तु॥56॥
जो जाति और शील-आचार से अपनी बराबरी का हो और अपने को अपने बराबर अथवा अपने से भी अधिक सिद्ध करता हो उसके यहाँ पर भोजन के लिए जाना उचित है परन्तु जो अपने विरोधी हों, उनके यहाँ भोजन व्यवहार नहीं करे। .
मुमूर्षुवध्यचौराणां कुलटालिङ्गिवैरिणाम्। बहुवैरवतां कल्पपालोच्छिष्टानभोजिनाम् ।। 57॥ कुकर्मजीविनामुग्रपतितासबपायिनाम्। रङ्गोपजीविविकृति सान्यभर्तृकयोषिताम्॥58॥ धर्मविक्रयिणां राजमहाजनविरोधिनाम्। स्वयं हनिष्यमाणानां गृहे भोज्यं न जातु चित्॥59॥
मौत के किनारे आए हुए, राजादि का वध करने योग्य हुए, चोर, कुलटा, कुमार्गी, लिङ्गधारी, वैरी, जिसके बहुत शत्रु हों, मद्य विक्रेता, उच्छिष्टि या झूठा अन्न खाने वाले, कुकर्म करके अपना भरण-पोषण करने वाले, उग्र स्वभावी, पापी, रंगजीवी, दो पति वाली स्त्री, धर्म विक्रेता (बात-बात में शपथ खाने वाले), राजा
और महाजन के वैरी, जिससे भविष्य में अपनी हानि की आशङ्का, मद्यपेयी और महापातक से पतित हुए मनुष्यों के घर किसी भी समय भोजन नहीं करना चाहिए। तत्र शलाकानिमित्तमाह -
भोजनानन्तरं याच्यं शलाकाद्वयमादरात्। यद्येका पतिता भूमावायुर्वित्तं च हीयते॥ 60॥
भोजन के बाद आदरपूर्वक दो सलाइयाँ (दाँतों की सफाई के लिए) माँगनी चाहिए। उनमें से यदि एक नीचे गिर जाए तो व्यक्ति के आयुष्य और द्रव्य की हानि जाननी चाहिए।
याज्ञवल्क्य का मत है- कदर्यबद्धचौराणां क्लीवरङ्गावतारिणाम्। वैणाभिशस्तवाधुष्यगणिकागणदीक्षिणाम्। चिकित्सकातुरक्रुद्धऍचलीमत्तविद्विषाम् ॥ क्रूरोग्रपतितव्रात्यदाम्भिकोच्छिष्टभोजिनाम् । अवीरास्त्रीस्वर्णकारस्त्रीजित ग्रामयाजिनाम्। शस्त्रविक्रयिकरितन्तुवायश्ववृत्तिनाम् ।। नृशंसराजरजककृतघ्नवधजीविनाम्। चैलधावसुराजीवसहोप पतिवेश्मनाम् ॥ पिशुनानृतिनोचैव तथा चक्रिकबन्दिनाम्। एषामन्नं न भोक्तव्यं सोमविक्रयिणस्तथा। (याज्ञवल्क्य.1, 161-165)