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96 : विवेकविलास भेड़ों, ऊँटनी और समस्त एक खुर वाले पशुओं का दूध ग्रहण नहीं करना चाहिए। आहारात् निमित्तविचारं
निःस्वादमन्नं कटु वा हृद्यमप्यश्रतो यदि।
तत्स्वस्यान्यस्य वा कष्टं मृत्युः स्वस्यारुचौ पुनः। 51॥ - यदि कभी ऐसा हो कि मिष्ठान्न खाते हुए भी वह स्वाद रहित या कटु लगे तो उससे अपने को अथवा दूसरे का कष्ट होता है। इसी प्रकार यदि उत्तम अन्नाहार करते समय भी अरुचि उत्पन्न हो तो अपनी मृत्यु की अथवा मरण तुल्य कष्ट की आशङ्का जाननी चाहिए।
भोजनानन्तरं सर्वरसलिप्तेन पाणिना। एकः प्रतिदिनं पेये जलस्य चुलुकोऽङ्गिना। 52॥
व्यक्ति को भोजन कर चुकने के बाद सब रस से भरे हुए हाथ से एक चुल्लू जल प्रतिदिन पीना चाहिए।
न पिबेत्पशुवत्तोयं पीतशेषं च वर्जयेत्। तथा नाञ्जलिना पेयं पयः पथ्यं मितं यतः॥53॥
पानी कभी पशु के समान नहीं पीना चाहिए। किसी के पीने बाद उच्छिष्ट जल को नहीं पिएँ और अञ्जलि से भी पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि पानी अपेक्षानुसार ही पीने का निर्देश है।"
करेण सलिलाट्टैण न गण्डौ नापरं करम्। नेक्षणे च स्पृशेत्किन्तुस्पष्टव्ये जानुनी श्रिये॥54॥
भोजन के उपरान्त भीगे हुए हाथ से दोनों कपोल, दूसरा हाथ और दोनों नेत्र- इनको स्पर्श नहीं करना चाहिए अपितु कल्याण के लिए अपनी पिण्डलियों को 'स्पर्श करना चाहिए। . उक्तं च -
'मा करेण करं पार्थ मा गल्लौ मा च चक्षुषी। जानुनी स्पृश राजेन्द्र! भर्तव्या बहवो यदि'॥5॥
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* मनु का मत है नव ब्यांत गाय का दूध दस दिन तक वर्जित है, ऊंटनी, एक खुर वाले पशु (घोड़ी
आदि), भेड़, गर्भिणी, जंगली पशु, स्त्री एवं मरे हुए बछड़े वाली गाय का दूध नहीं पीना चाहिए • - अनिर्दशाया गोः क्षीरमौष्ट्रमैकशफं तथा। आविकं सन्धिनीक्षीरं विवत्सायाश्च गो: पयः॥ (मनुस्मृति ___5, 8 तुलनीय याज्ञवल्क्यस्मृति 1, 170 तथा गौतमस्मृति 17) **सुश्रुत का मत है कि अञ्जलि से जल नहीं पिए- नाञ्जलिपुटेनाप: पिबेत्। (सुश्रुत. चिकित्सा. 24,
98) इसी प्रकार जल में मुंह लगाकर पशु की भाँति जल पीने की मनाही है-न वामहस्तेनैकेन पिबेदकोण वा जलम्॥ (नारदपुराण पूर्व. 26, 36 तथा पद्मपुराण स्वर्ग. 55, 74)