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80 : विवेकविलास
स्वामी सम्भावितैश्वर्यः सेव्यः सेव्यगुणान्वितः। सुक्षेत्रबीजवत्कालान्तरेऽपि स्यान्न निष्फलः ।।79॥
जिस व्यक्ति में स्वामी के समस्त गुण विद्यमान हों और जिससे लक्ष्मी की प्राप्ति की सम्भावना हो, ऐसे स्वामी की सेवा करना चाहिए. जैसे कि उत्तम खेत में बोये गए बीज की भाँति कालान्तर में भी उसकी सेवा निष्फल नहीं होती है। अथ मन्त्रिलक्षणं
स्वाभिभक्तो महोत्साहः कृतज्ञो धार्मिकः शुचिः। अकर्कशः कुलीनश्च स्मृतिज्ञः सत्यभाषकः॥80॥ विनीतः स्थूललक्षश्चा व्यसनो वृद्धसेवकः। अतन्द्रः सत्वसम्पन्नः प्राज्ञः शूरोऽचिरक्रियः॥81॥ राजा परीक्षितः सर्वोपधासु निजदेशजः। राजार्थस्वार्थलोकार्थकारको निःस्पृहः शमी॥ 82॥ अमोघवचनः कल्पः पालिताशेषदर्शनः। पात्रौचित्येन सर्वत्र नियोजितपदक्रमः॥83॥ आन्वीक्षिकीत्रयीवार्ता दण्डनीतिकृतश्रमः । क्रमागतो वणिक्पुत्रः सेव्यो मन्त्री न चापरः ॥ 84॥
व्यापारी के पुत्र को चाहिए कि वह स्वामीभक्त, अति उत्साही, किए का उपकार मानने वाला, धर्म पर श्रद्धा रखने वाला, पवित्र, कोमल, कुलीन, स्मृतियोंधर्मशास्त्र का जानकार, सत्यवादी, विनय सम्पन्न, उदार, व्यसन से दूर रहने वाला, वृद्ध पुरुषों की सेवा करने वाला, निद्रा-आलस्य रहित, सत्वशाली, बुद्धिशाली, शूरवीर, शीघ्र कार्य करने वाला, भक्ति, निष्काम बुद्धि, धैर्य और ब्रह्मचर्य- इन चार बातों में राजा ने अच्छी तरह से जिसकी परीक्षा ली हो, अपने देश में उत्पन्न होने वाला, राजा के अपने और लोगों द्वारा खड़ी की गई उलझनों में न पड़ते हुए कार्य करने वाला, निरीच्छ, शान्त, कथनानुसार करने वाला, समर्थ, समस्त दर्शनों की रक्षा करने वाला, पात्र की योग्यता देखकर सब जगह पाँव रखने वाला, आन्वीक्षिकी (तर्कशास्त्र), त्रयी वार्ता या लोकपक्ष और दण्डनीति- इन चारों नीतियों के अभ्यासी, वंश परम्परागत ज्ञानवान् को मन्त्री बनाए, अन्य को नहीं।
-----------... * वीरमित्रोदय के लक्षणप्रकाश (पृष्ठ 201-204) में मन्त्री के लक्षण आए हैं। महाभारत, विष्णुधर्मोत्तरपुराण, मत्स्यपुराण, याज्ञवल्क्यस्मृति, शुक्रनीति (द्वितीय अध्याय) आदि में भी मन्त्री के लक्षण मिलते हैं।