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अथ दिनचर्या नामाख्यं द्वितीयोल्लासः : 67
यदि राजाज्ञा हो तो क्षौरकर्म में नक्षत्र नहीं देखा जाता है । कतिपय विद्वानों का कहना है कि तीर्थ में अथवा शोक के कारण क्षौर कराना हो तो भी नक्षत्र नहीं देखा जाता है।
रात्रौ सन्ध्यासु विद्यादो क्षौरं नोक्तं तथोत्सवे ।
भूषाभ्यङ्गाशनस्नान पर्वयात्रारणेष्वपि ॥ 19 ॥
रात्रि में, सन्ध्या को, विद्यारम्भ में, उत्सव में, भूषण, अभ्यङ्ग (तैलमर्दन) भोजन और स्नान करने के बाद, किसी पर्व तिथि को और यात्रार्थ या संग्राम में जाते समय क्षौर नहीं कराना चाहिए।*
केशकर्तनं च नखच्छेदनं
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कल्पयेदेकशः पक्षे रोमश्मश्रुकचान्नखान् ।
न चात्मदशनाग्रेण स्वपाणिभ्यां न चोत्तमः ॥ 20 ॥
सामान्यतः पक्ष में एक बार अपने दाढ़ी-मूँछ, सिर के केश और नाखून काटने चाहिए किन्तु अपने ही हाथों अपने बाल नहीं काटने चाहिए और अपने दाँत से नाखून भी नहीं काटने चाहिए ।
अथ वस्त्राभूषणाधिकारः
आत्मवित्तानुमानेन कालौचित्येन सर्वदा । कार्यों वस्त्रादिशृङ्गारो वयसश्चानुमानतः ॥ 21 ॥
* क्षौर के सम्बन्ध में ज्योतिष ग्रन्थों में कई विचार मिलते हैं। वराहमिहिर का मत है कि स्नान कराने के उपरान्त, कहीं भी गमनोन्मुख होते समय, तैलादि अभ्यङ्ग के उपरान्त, युद्धकाल में, बिना आसन, संध्याकाल, रात्रिकाल, शनि, मङ्गल और रविवार में, रिक्तातिथि (4, 9, 14) में, नवें दिन में, विष्टि करण में क्षौरकर्म शुभ नहीं होता है- न स्त्रातमात्रगमनोन्मुख भूषितानामभ्यक्तभुक्तरण कालनिरासनानाम् । सन्ध्यानिशा कुजदिनेषु तिथौ च रिक्ते क्षौरं हितं न नवमेऽह्नि न चापि विष्टयाम् ॥ (बृहत्संहिता 98, 13 एवं राजमार्तण्ड 276)
भोज का मत है कि राजाज्ञा या ब्राह्मण के कथन से, विवाहावसर पर, मृताशौच की शुद्धि हो तब या यज्ञ, दीक्षादि के अवसर पर अथवा कारागार से मुक्त होने पर समस्त नक्षत्रों में क्षौरकर्म शुभ होता है— नृपाज्ञया ब्राह्मणसङ्गतौ विवाहकाले मृतसूतके च । बन्धस्य मोक्षे क्रतुदीक्षणे च सर्वेषु शस्तं क्षुरकर्मभेषु ॥ ( राजमार्तण्ड 279 )
नारद का मत है कि उबटन के बाद, दोनों सन्ध्याओं के अन्त में, भोजन के बाद, रात्रि, उत्कटता, युद्धोन्मुख, अलङ्कृत होकर, यात्रा, नवें दिन में क्षौर कर्म नहीं करवाना चाहिए- अभ्यक्ते संध्ययोनांत निशि भुक्तेन चाहवे । नोत्कटे भूषिते नैव याने न नवमेह्नि च ॥ (ज्योतिर्निबन्ध पृष्ठ 118, श्लोक 30 ) श्रीपति का मत है कि स्नान के बाद या हवनादि कर्म का दिवस, आभूषणादि को धारण करने का दिन, यात्रा और युद्ध की तैयार हो, क्षौर कर्म वर्जनीय है। इसी प्रकार रात्रि, सन्ध्या काल, व्रत दिवस, नवमी (रिक्ता तिथि 4, 9, 14 ) को क्षौर नहीं करना चाहिए- न स्त्रातभुतोत्कट भूषणा नामभ्युक्त यात्रा समरोत्सुकानाम् । क्षौरं विदध्यात् निशि सन्ध्यायोर्वाजिजीविषूणां नवमे न चाह्नि । (रत्नमाला 4, 24 )