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अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लासः : 57 स्थपति या गृहस्वामी के लिए स्मृतिभ्रंश जानना चाहिए। गर्तनिवेशनं -
प्रासादगापुरोऽम्बुग्रावकर्करकाङ्गतः। विधिना तत्र सौवर्णी वास्तुमूर्ति नियोजयेत्॥ 174॥
नींव खोदते समय वहाँ से पानी, पत्थर, कङ्कड़ आदि निकाल लें और आधार पर विधिपूर्वक स्वर्ण निर्मित वास्तुदेव की प्रतिमा का निवेश करना चाहिए। अथ प्रासादोदयमानमाह -
उदयस्त्रिगुणः प्रोक्तः प्रासादस्य स्वमानतः। प्रासादोच्छ्रयविस्तारा जगती तस्य चोत्तमा॥175॥
प्रासाद का उदयमान (ऊंचाई) स्वकीय प्रमाण से तीन गुना करना चाहिए और प्रासाद की जितनी ऊँचाई हो उतने विस्तार प्रमाण उसकी जगती रखना उत्तम
मूलकोष्ठे चतुःकोणे बहिर्यः कुम्भकः स्थिरः। प्रासादहस्तसङ्ख्यानं तस्य कोणद्वयात्पुनः॥ 176॥
प्रासाद में मूलकोष्ठक को चतुरस्र बनाएँ और उसके बाहर जो कुम्भी होती है, उसके दो कोनों से प्रासाद की हस्त संख्या जाननी चाहिए। कलशविस्तारं -
यः कोणो मूलरेखाया विस्तरस्तत्पृथुत्वतः। कलशे विस्तराईयँ पादोनं द्विगुणं पुनः॥ 1770.
प्रासाद में मूल रेखा के कोने में जितनी गहराई हो, उसका प्रमाण परिकल्पित करें और तद्नुसार कलश की गहराई ग्रहण करें और उक्त गहराई से लम्बाई पौने दो गुनी जाननी चाहिए। प्रासादे ध्वजामाहात्म्यं
प्रासादे ध्वजनिर्मुक्ते पूजाहोमजपादिकम्। सर्वं विलुप्यते यस्मात्तस्मात् कार्यों ध्वजोच्छ्रयः॥ एकाहमपि प्रासादं ध्वजहीनं न धारयेत्॥ 178॥
जिस प्रासाद पर ध्वजा न चढ़ी हुई हो, तो वहाँ किया गया समस्त पूजन, होम, जपादि समस्त धर्मकृत्य निष्फल होते हैं। इसलिए अवश्य ध्वजारोहण करना
--------- * यह मत वराहमिहिर से तुलनीय है-सूत्रच्छेदे मृत्युः कीले चावाङ्मुखे महान् रोगः । गृहनाथस्थपतीनां
स्मृतिलोपे मृत्युरादेश्यः ।। स्कन्धाच्च्युते शिरोरुक् कुलोपसर्गोऽपवर्जिते कुम्भे भनेऽपि च कर्मिववश्युते कराद्गृहपतेर्मृत्युः ॥ (वही 52, 110-111)