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64 : विवेकविलास तैलाभ्यङ्गं -
न पर्वसु न तीर्थेषु न सङ्क्रान्तौ न वैधृतौ। न विष्टौ न व्यतीपाते तैलाभ्यङ्गः प्रशस्यते॥4॥
पर्व दिवस तीर्थ में, सक्रान्ति के दिन और वैधृति, विष्टिकरण और व्यतिपातइन तीन दिनों में उबटन (या तेल की मालिश) नहीं करनी चाहिए।
स्नानं शुद्धाम्भसा यत्तन्न कदाचिनिषिध्यते। न विष्टौ न व्यतीपाते तैलाभ्यने तदीक्ष्यते॥5॥
शुद्ध पानी से नित्य स्नान करने के लिए कोई निषेध नहीं किन्तु तैलाभ्यङ्ग के प्रसङ्ग में वार, तिथ्यादि को देखना चाहिए और विष्टिपात, व्यतिपात आदि को त्यागना चाहिए। तथा चान्य स्नानस्य विचारं
गर्भाशयामृतुमतीं गत्वा स्नायात्परेऽहनि। अनृतुस्त्रीगमे शौचं मूत्रोत्सर्गवदाचरेत्॥6॥
गर्भवती अथवा रजस्वला स्त्री से गमन किया हो तो दूसरे दिन स्नान करना चाहिए और ऋतुकाल नहीं होते हुए स्त्रीसङ्ग किया हो तो मूत्र करने के बाद जैसे शुद्धि की जाती है, वैसी ही शुद्धि अपेक्षित है।
रात्रौ स्नानं न शास्त्रीय केचिदिच्छन्ति पर्वणि। तीर्थे स्नात्वान्यतीर्थानां कुर्यानिन्दास्तुतिन च॥7॥
कभी रात्रि में स्नान करने के लिए शास्त्र में नहीं कहा है किन्तु कितने ही धर्मप्राण मनुष्य पर्व हो तो रात्रि को भी स्नान करना चाहिए, ऐसा कहते हैं। एक तीर्थ में स्नान कर वहाँ दूसरे तीर्थ की निन्दा या स्तुति नहीं करना चाहिए।
अज्ञाते दुःप्रवेशे च चाण्डालैर्दूषितेऽथवा।। तरुच्छन्ने सशैवाले न स्नानं युज्यते जले॥8॥
अज्ञात जलाशय, विषम मार्ग वाले स्रोत, चाण्डालों से दूषित, वृक्षों से आच्छन्न हुए और शैवाल-कांई वाले पानी में स्नान करना उचित नहीं माना जाता है। अन्यदप्याह -
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* विष्णुपुराण में कहा गया है- चतुर्दश्यष्टमी चैव तथामा चाथ पूर्णिमा। पर्वाण्येतानि राजेन्द्र रविसङ्क्रान्तिरेव च ॥ तैलस्त्रीसम्भोगी सर्वेष्वेतेषु वै पुमान्। विण्मूत्रभोजनं नाम प्रयाति नरकं मृतः॥
(अंश 3, 11, 118-119) **तुलनीय-निशायां चैव न स्त्रायात्सन्ध्यायां ग्रहणं विना। (स्कन्दपुराण ब्रह्म. चातुर्मास्य. 1, 29)
तथा- भास्करस्य करैः पूतं दिवा स्रानं प्रशस्यते। अप्रशस्तं निशि स्नानं राहेरन्यत्र दर्शनात् ॥ (पाराशरस्मृति, 12, 20)