________________
अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास: : 41 श्वेतपुष्प शान्तिकारक है, पीतपुष्प लाभदायक, श्यामपुष्प पराभव करने वाला, रक्तपुष्प माङ्गलिक है और इनके अतिरिक्त पाँचों ही वर्ण वाला कोई पुष्प हो तो वह सिद्धिदाता जानना चाहिए। पञ्चामृत पूजा अथवा शान्ति कार्य हो तो गुड़ व घृत का दीपक जलाना चाहिए।
पद्मासनसमासीनो नासाग्रन्यस्तलोचनः। मौनी वस्त्रावृतास्योऽयं पूजां कुर्याजिनेशितुः ॥97॥
पूजनार्थियों को पद्मासन लगाकर नासिका के भाग पर दृष्टि रखते हुए मौन रखकर और शुद्धवस्त्र से मुख कोश बाँधकर जिनेश्वर का पूजन करना चाहिए। स्नानादीनावसरे मुखस्थितिं -
स्नानं पूर्वमुखीभूय प्रतीच्यां दन्तधावनम्। उदीच्यां श्वेतवासांसि पूजा पूर्वोत्तरामुखी॥98॥
इति पूजाविधिः। पूर्व दिशा में मुँह रखकर स्नान करना चाहिए। पश्चिम दिशा में मुंह रखकर दाँत साफ करें और उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर देवपूजन करना चाहिए। अथ जप विधिः
सङ्कलाद्विजने भव्यः सशब्दान्मौनवाशुभः। - मौनजान्मानसः श्रेष्ठो जपः घ्यः परः परः॥११॥
जप के सम्बन्ध में यह जानना चाहिए कि सामूहिक रूप से मन्त्र जाप करने की अपेक्षा वैयक्तिक, एकान्तिक जाप करना उत्तम है। जप के अक्षर लोग सुने, ऐसे कहने से, मौन रहकर गणना करना अच्छा है। मौन रखकर गिनने से, मन में ही मन्त्राक्षरों की पंक्ति का अर्थ सहित चिन्तन करना अत्युत्तम है। उपर्युक्त तीन प्रकार के जप में पहले से दूसरा और दूसरे से तृतीय श्रेष्ठ समझना चाहिए। अथ प्रश्न विचारः
पूजाद्रव्यार्जनोद्वाहे दुर्गादिसरिदाक्रमे। गमागमे जीवित च गृहक्षेत्रादिसङ्ग्रहे। 100॥ क्रयाविक्रयणे वृष्टौ सेवाकृषिविषे जये। विद्यापट्टाभिषेकादौ शुभेऽर्थे च शुभः शशी। 101॥
(यहाँ स्वरशास्त्र के अनुसार विविध प्रश्नों पर विचार किया जा रहा है) पूजा कार्य, द्रव्योपार्जन करना, दुर्ग पर आरोहण, नदी पार करना, कहीं जाना-आना, जीवन सम्बन्धी कार्य, गृहार्थ क्षेत्र इत्यादि ग्रहण करना, किसी वस्तु का क्रयविक्रय, वृष्टि के लिए कोई अनुष्ठान, सेवा करना, कृषि सम्बन्धी कार्य करना, विष