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प्रथम अधिकार
अर्थ-मोक्षमार्गकी इच्छा करनेवाले जीवोंके लिये जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्वार्थ जाननेके योग्य हैं। ___ भावार्थ-मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत सात तत्त्वार्थ हैं। इनका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है
जीव-जो चेतना अथवा ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोगसे सहित हो उसे जीव कहते हैं। अजीव-जो बेतना अथवा ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोगसे रहित हो वह अजीव है । आत्रव-आत्मामें नबीन कर्मोके प्रवेशको आस्रव कहते हैं । बन्ध-आत्माके प्रदेशोंके साथ कर्मपरमाणुओंका नोरशोरके समान एकक्षेत्रावगाहरूप होकर रहना बन्ध है। संघर-आस्रबका रुक जाना संवर कहलाता है। निर्जरा-पूर्वबद्ध कर्मोंका एकदेश क्षय होना निर्जरा है। मोक्ष-समस्त कर्मोंका आत्मासे सदाके लिये पृथक् हो जाना मोक्ष कहलाता है ।। ६ ।
सात तत्त्वार्थोंमें हेय और उपादेयताका वर्णन उपादेयतया जीवोऽजीवो हेयतयोदितः । हेयस्यास्मिन्नुपादानहेतुत्वेनास्त्रवः स्मृतः ॥ ७ ॥ हेयस्यादानरूपेण बन्धः स परिकीर्तितः । संवरो निर्जरा हेयहानहेतुतयोदितौ । हेयप्रहाणरूपेण मोक्षो जीवस्य दर्शितः ।। ८ ।।
(षट्पदम् } अर्थ-इन सात तत्त्वोंमें जीवतत्व उपादेयरूपसे और अजीवतत्व हेयरूपसे कहा गया है अर्थात् जीवतत्त्व ग्रहण करने योग्य और अजीवतत्त्व छोड़ने योग्य बतलाया गया है। छोड़ने योग्य अजीवतत्त्वके ग्रहणका कारण होनेसे आस्रवतत्त्व कहा गया है तथा छोड़ने योग्य अजीवतत्त्वके ग्रहणरूप होनेसे बन्धतत्त्वका निर्देश हआ है। संबर और मिर्जरा ये दो तत्त्व, अजीवतत्त्वके छोड़ने कारण होनेसे कहे गये हैं और छोड़ने योग्य अजीवतत्त्वके छोड़ देनेसे जीवकी जो अवस्था होती है उसे बतलानेके लिये मोक्षलत्त्व दिखाया गया है। ___भावार्थ-जीव और अजीब ये दो मूल तत्त्व हैं। इनमें जीव उपादेय है
और अजीव छोड़ने योग्य है, इसलिये इन दोनोंका कथन किया गया है। जीव अजीवका ग्रहण क्यों करता है, इसका कारण बतलानेके लिये आस्रवतत्त्वका कथन किया गया है। अजीवका ग्रहण करनेसे जीवकी क्या अवस्था होती है, यह बतलानेके लिये बन्धतत्त्वका निर्देश है। जीव अजीवका सम्बन्ध कैसे छोड़