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तत्वार्थसार
जो शब्द हैं वे अनक्षर शब्द हैं। अभाषात्मक शब्द भी प्रायोगिक और वैखसिक के मेदसे दो प्रकारका होता है । मनुष्यके प्रयत्नसे उत्पन्न मेरी, वीणा, तथा घंटा आदिका जो शब्द है वह वैस्रसिक है ॥ ६३ ॥
वांसुरी
संस्थानके व
संस्थानं कलशादीनामित्यलक्षणमिष्यते ।
ज्ञेयमम्भोधरादीनामनित्थंलक्षणं
तथा ॥ ६४ ॥
अर्थ -- संस्थानका अर्थ आकृति है । इसके दो भेद हैं- १ इत्थंलक्षण और दो अनित्थं लक्षण | कलश आदि पदार्थोंका जो आकार कहा जा सकता है वह इत्थंलक्षण संस्थान है और मेघ आदिका जो आकार कहा नहीं जा सकता वह अनित्यंलक्षण संस्थान है ।। ६४ ।।
सूक्ष्मत्यके भेद अन्त्यमापेक्षिकश्चेति सूक्ष्मत्वं द्विविधं भवेत् । परमाणुषु तत्रान्त्यमन्यद्विन्यामलकादिषु || ६५ ॥
अर्थ- सूक्ष्मत्व दो प्रकारका होता है - १ अन्त्य और २ आपेक्षिक । इनमेंसे अन्त्य सूक्ष्मत्व परमाणुओंमें होता है और दूसरा आपेक्षिक सूक्ष्मत्व बेल तथा आंवला आदिमें पाया जाता है ।। ६५ ।।
स्थौल्यके भेद
अन्त्यापेक्षिकभेदेन ज्ञेयं स्थान्यमपि द्विधा ।
महास्कन्धेऽन्त्यमन्यच्च वदरामलकादिषु ॥ ६६॥
अर्थ — अन्त्य और आपेक्षिकके भेदसे स्थौल्य भी दो प्रकारका जानना चाहिये ! अन्त्य स्थौल्य लोकरूप महास्कन्धमें होता है और आपेक्षिक स्थौल्य र तथा आंवला आदिमें होता है ।
बन्धके भेव
तत्र
द्विधा वैसिको बन्धस्तथा प्रायोगिकोऽपि च । वैस्रसिको वह्निविद्युदम्भोधरादिषु । बन्धः प्रायोगिको यो जतुकाष्ठादिलक्षणः || ६७॥
कर्मनो कर्मबन्धो यः सोऽपि प्रायोगिको भवेत् ।
( षट्पवम् )