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उपसंहार प्रमाणनयनिक्षेपनिर्देशादिसदादिभिः ।
सप्ततचीमिति ज्ञात्वा मोक्षमार्ग समाश्रयेत् ।।१।। अर्थ-::: प्रमः ।, प, निलेप, निदि स. संख्या आदि उपायोंसे सात तत्त्वोंके समूहको जानकर मोक्षमार्गका आश्रय लेना चाहिये ॥१॥
मोक्षमार्गको द्विविधता निश्चयव्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गो द्विधा स्थितः ।
तत्रायः साध्य रूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ।।२।। अर्थ-निश्चय और व्यवहारको अपेक्षा मोक्षमार्ग दो प्रकारका है। उनमें पहला अर्थात् निश्चय मोक्षमार्ग साध्यरूप है और दूसरा अर्थात् व्यवहार मोक्षमार्ग उसका साधन है ।। २॥
निश्चयमोक्षमार्गका कथन श्रद्धानाधिगमोपेक्षाः शुद्धस्य स्वात्मनो हि याः ।
सम्यक्त्वज्ञानवृत्तात्मा मोक्षमार्गः स निश्चयः ।। ३ ।। अर्थ-अपने शुद्ध आत्माका जो श्रद्धान, ज्ञान और उपेक्षाभाव है वही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र है। यह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही निश्चय' मोक्षमार्ग है ।। ३ ।।।
व्यवहारमोक्षमार्गका निरूपण श्रद्धानाधिगमोपेक्षा याः पुनः स्युः परात्मनाम् ।
सम्यक्त्वज्ञानवृत्तात्मा स मार्गो व्यवहारतः ।।४।। अर्थ-और जो परपदार्थोंका नद्धान, ज्ञान तथा उपेक्षाभाव है वह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है। यह सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, और सम्यक्चारित्र व्यवहारमोक्षमार्ग है ।। ४ ।
व्यवहारी मुनिका लक्षण श्रद्दधानः परद्रव्यं बुध्यमानस्तदेव हि । तदेवोपेक्षमाणश्च व्यवहारी स्मृतो मुनिः ।।५।।