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तत्त्वार्थसार
क्षमा धर्मका लक्षण क्रोधोत्पत्तिनिमित्तानामत्यन्तं सति संभवे |
आक्रोशताडनादीनां कालुष्योपरमः क्षमा ॥१४॥ अर्भ-गाली देना तथा मारना आदिक क्रोधकी उत्पत्तिके बहुत भारी निमित्तोंके रहते हुए भी कलुषताका अभाव होना क्षमा है।
भावार्थ-क्रोधोत्पत्तिके निमित्त मिलनेपर भी हृदयमें क्रोधका उत्पन्न नहीं होना सो क्षमा धर्म है ॥ १४ ॥
मार्दव धर्मका लक्षण अभावो योऽभिमानस्य परैः परिभवे कृते ।
जात्यादीनामनातेशान्मदानां मादेवं हि हद ॥१५॥ अर्थ-दूसरोंके द्वारा अनादर किये जानेपर भी जाति आदिक मदोंका आवेश न होनेसे जो अभिमानका भाव है वह मार्दव धर्म है।
भावार्थ-ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर इन आठ वस्तुओंका अहंकार मनुष्यको हुआ करता है । जब किसी अन्यके द्वारा तिरस्कार होता है तब वह अहंकार स्पष्टरूप में दिखाई देने लगता है | जब ऐसी स्थिति हो जाने कि दूसरों के द्वारा तिरस्कार किये जानेपर भी ज्ञान आदिका अहंकार प्रकट न हो तब मार्दवधर्म होता है। संक्षेपमें मानकषायके अभावसे आत्मामें नम्रता आती है वही मार्दव धर्म कहलाती है ।। १५ ॥
आजवधर्मका लक्षण वाङ्मनःकाययोगानामवक्रत्वं तदार्जवम् । अर्थ-वचन, मन और काय योगोंको जो अवक्रता है वह आर्जव धर्म है ।
भावार्थ-मन, वचन और काय इन तीन योगोंको सरलताका होना अर्थात् मनसे जिस बातका विचार किया जावे वही वचनसे कही जावे तथा बचनसे जो कही जावे उसीका कायसे आचरण किया जावे, आर्जव धर्म है । मायाकषायका अभाव होनेपर हो इसकी प्राप्ति होती है।
शौचधर्मका लक्षण परिभोगोपभोगत्वं जीवितेन्द्रिय भेदतः ॥१६॥
चतुर्विधस्य लोभस्य निवृत्तिः शौचमुच्यते । अर्थ-प्राणीसम्बन्धी परिभोग और उपभोग तथा इन्द्रियसम्बन्धी परिभोग
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