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तत्वार्थसार
जाता है । भूतपूर्व प्रज्ञापन नयको अपेक्षा अनन्तर गति और एकान्तर गतिसे चर्चा होती है । अनन्तर गतिकी अपेक्षा सिर्फ मनुष्यगतिसे सिद्ध होता है और एकान्तर गतिकी अपेक्षा चारों गतियोंमें उत्पन्न हुआ जीव सिद्ध होता है ।
क्षेत्र - प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा सिद्धिक्षेत्र अथवा स्वकीय आत्म- प्रदेशों में सिद्ध होता है और भूतपूर्वप्रज्ञापन नयको अपेक्षा पन्द्रह कर्मभूमियां में उत्पन्न हुआ मनुष्य सिद्ध होता है । संहरणकी अपेक्षा समस्त अढ़ाई द्वीपसे सिद्ध होता है।
तीर्थ -- कोई जीव तीर्थंकर होकर सिद्ध होता है और कोई तीर्थंकर हुए विना ही सिद्ध होता है। जो तीर्थंकर हुए विना सिद्ध होता है वह भी दो प्रकारका है— कोई तो तीर्थकरके रहते हुए सिद्ध होता है और कोई तीर्थंकरके मुक्त हो जाने के वाद सिद्ध होता है ।
ज्ञान - प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा सिर्फ केवलज्ञान से हो जीव सिद्ध होता है और भूतपूर्व प्रज्ञापन नयकी अपेक्षा मति, श्रुत इन दो ज्ञानोंसे, मति, श्रुत, अवधि अथवा मत, श्रुत, मन:पर्यय इन तीन ज्ञानोंसे और मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय इन चार ज्ञानोसे सिद्ध होता है ।
अवगाहन - अवगाहनाके उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्यको अपेक्षा तीन भेद हैं । उत्कृष्ट अवगाहनाकी अपेक्षा पाँचसी पच्चीस धनुषकी अवगाहनावाला मनुष्य और जघन्य अवगाहनाकी अपेक्षा साड़े तीन हाथको अवगाहनावाला मनुष्य सिद्ध होता है इससे अधिक और कम अवगाहनावाला मनुष्य सिद्ध नहीं होता । मध्यम अवगाहना के अनेक विकल्प हैं ।
बुद्धबोधित - कोई मनुष्य पूर्वभवसम्बन्धी संस्कारकी प्रबलतासे स्वयं हो विरक्त होकर मुनिदीक्षा धारण कर सिद्ध होता है और कोई मनुष्य दूसरेके समज्ञानेपर विरक्त हो मुनिदीक्षा धारण कर सिद्ध होता है। जो स्वयं विरक्त होता है उसे बुद्ध अथवा प्रत्येकबुद्ध या स्वयंबुद्ध कहते हैं और जो दूसरेके समझानेपर विरक्त होता है वह बोधितबुद्ध कहलाता है ।
चारित्र - प्रत्युत्पन्न नयको अपेक्षा न चारित्रसे और न अचारित्रसे सिद्ध होता है किन्तु ऐसे भाव से सिद्ध होता है जिसे चारित्र या अचारित्र कुछ भी नहीं कहते हैं। भूतपूर्वप्रज्ञापन नयकी अपेक्षा अनन्तर और व्यवहित के भेदसे दो प्रकारकी चर्चा होती है । अनन्तर भेदकी अपेक्षा सिर्फ यथाख्यातचारित्र से मनुष्य सिद्ध होता है और व्यवहितकी अपेक्षा सामायिक, छेदोपस्थापना, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात इन चार प्रकारके चारित्रोंसे अथवा जिस जीव के परिहारविशुद्धि नामका चारित्र होता है उसकी अपेक्षा सामायिक आदि पांचों चारित्रोंसे सिद्ध होता है।