Book Title: Tattvarthsar
Author(s): Amrutchandracharya, Pannalal Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 257
________________ २०४ तत्वार्थसार करनेपर प्रत्युत्पन्न नयकी विवक्षासे सब जीव अवेद अवस्थामें ही सिद्ध होते हैं इसलिये कोई अल्पबहुत्व नहीं है परन्तु भूतपूर्वप्रज्ञापन नयको विवक्षासे नपुंसक वेदसिद्ध सबसे थोड़े हैं, स्त्रीवेदसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं और वेदसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं | तीर्थानुयोगकी अपेक्षा तीर्थकरसिद्ध थोड़े हैं और सामान्यसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । चारित्रानुयोगकी अपेक्षा प्रत्युत्पन्न नबकी विवक्षासे चर्चा करनेपर चूंकि सब अव्यपदेशभावसे सिद्ध होते हैं इसलिये कोई अल्पबहुत्व नहीं है। भूतपूर्वप्रज्ञापन नयकी विवक्षासे भी यथाख्यातचारित्र नामक अनन्तर चारित्रकोई अल्पवहत्व नहीं है । व्यवधानको अपेक्षा सानायिकादि पांचों चारित्रके समूहसे सिद्ध होनेवाले अल्प हैं और परिहारविशुद्धि रहित चार चारित्रोंके समूहसे सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यात्तगुणे हैं 1 बुद्धबोधित अनुयोगको अपेक्षा प्रत्येकावुद्ध थोड़े हैं और बोधितबुद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। ज्ञानानुयोगकी अपेक्षा प्रत्युत्पन्न नयकी विवक्षामें सब केवलज्ञानसे सिद्ध होते हैं इसलिये अल्पबहुत्व नहीं है। किन्तु भूतपूर्वप्रज्ञापन नयको अपेक्षा द्विज्ञानसिद्ध सबसे अल्प हैं, चतुर्ज्ञानसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं और विज्ञानसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं ! यह सामान्यकी अपेक्षा चर्चा है। विशेषकी अपेक्षा मतिश्रुतमनःपर्ययज्ञानसिद्ध सबसे थोड़े हैं, मतिश्रुतज्ञानसिद्ध उनके संख्यातगुणे हैं, मतिश्रुतावधिमनःपर्पयज्ञानसिद्ध उनसे संख्यातगुण हैं और मतिश्रुतावधिज्ञानसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। अवगाहनानुयोगको अपेक्षा अनन्तर अवगाहनाकी विवक्षासे चर्चा करनेपर जघन्य अवगाहनासे सिद्ध होनेवाले सबसे थोड़े हैं, उत्कृष्ट अवगाहनासे सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुण हैं, यवमध्यसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं, अधस्ताद्यवमध्यसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं और अर्ध्वं यत्रमध्मसिद्ध उनसे कुछ विशेष अधिक है 1 अनन्तर अनुयोगकी अपेक्षा अष्टसमयानन्तर सिद्ध सबसे थोड़े हैं, सप्तसमयानन्तरसिद्ध उनसे संख्यातगणे हैं, इस तरह हिसमयानन्तर सिद्धों तक असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे हैं। संख्यानुयोगको अपेक्षा अष्टोत्तरशतसिद्ध सबसे थोड़े हैं, अष्टोत्तरशतसिद्धोंसे लेकर पञ्चाशत् सिद्धों तक अनन्तगुणे-अनन्तगुणे हैं, एकोनपञ्चाशत् सिद्धोसे लेकर पञ्चविंशति सिद्धों तक असंख्यातगुणे हैं और चतुर्विशति सिद्धोंसे लेकर एकसिद्धों तक उत्तरोत्तर संख्यातगुणे-संख्यातगुणे हैं। अन्तर-जघन्यसे एक समय और उत्कृष्ठको अपेक्षा छहमासका अन्तर जानना चाहिये ॥ ४१-४२ ।। सिद्धोंको अन्य विशेषता तादात्म्यादुपयुक्तास्ते केवलज्ञानदर्शने । सम्यक्त्वसिद्धतावस्था हेत्वभावाच्च निःक्रियाः ॥४॥

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