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तत्वार्थसार
आर्तध्यानका लक्षण और उसके भेद प्रियभ्रंशेऽप्रियप्राप्तौ निदाने वेदनोदये | आर्त्तं कषायसंयुक्तं ध्यानमुक्तं समासतः || ३६ ||
अर्थ - इष्टका वियोग, अनिष्टका संयोग, निदान और वेदनाका उदय होनेपर जो कषाय से युक्त ध्यान होता है वह संक्षेपसे आर्त्तध्यान कहा गया है ।
भावार्थ-- आतिका अर्थ दुःख हैं, उस आति अर्थात् दुःखके समय जो होता है वह आर्त कहलाता है। इसके इटवियोगज, अनिष्टसंयोगज, निदान और वेदनाजके भेदसे चार भेद हैं । स्त्री-पुत्र आदि इष्ट जनोंके वियोगजन्य दुःखके समय जो होता है वह इष्टवियोगज आर्त्तध्यान है । शत्रु, सिंह, सर्प आदि अनिष्ट पदार्थोके संयोगजन्य दुःख के समय जो होता है वह अनिष्टसंयोगज आर्त्तध्यान है । आगामी भोगाकाङ्क्षाको निदान कहते हैं उस निदान सम्बन्धी दुःखके समय होनेवाला ध्यान निदानज आलंध्यान है। और उदरपीड़ा आदि वेदनाओंके दुःखके समय होनेवाला ध्यान वेदनाज आर्त्तध्यान कहलाता है || ३६ ||
ध्यानका लक्षण और भेद
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हिंसायामनृते स्वेये तथा विपयरक्षणे । रौद्रं कषायसंयुक्तं ध्यानमुक्तं समासतः ||३७||
अर्थ- हिंसा, झूठ, चोरी और विषय संरक्षणके समय कषायसे युक्त जो ध्यान होता है वह संक्षेपसे रौद्रध्यान कहा गया है ।
भावार्थ - 'रुद्रस्य कार्य रौद्र' रुद्र अर्थात् क्रूर परिणामवाले जीवका जो कार्य है वह रौद्र कहलाता है । 'हिंसा, झूठ, चोरी और विषयसंरक्षण ये क्रूर कार्य हैं । इनमें आनन्द माननेकी अपेक्षा रोद्रध्यानके निम्नलिखित चार भेद हैं१ हिंसानन्द, २ मृषानन्द, ३ स्तेयानन्द और ४ परिग्रहानन्द । इनका अर्थ शब्दोंसे हृी स्पष्ट हैं ।। ३७ ।।
ध्यानका लक्षण
एकाग्रत्वेऽतिचिन्ताया निरोधो ध्यानमिष्यते । अन्तर्मुहूर्ततस्तच्च भवत्युत्तम संहतेः ||३८||
अर्थ --- तीव्र चिन्ताका किसी एक पदार्थ में रुक जाना ध्यान कहलाता है । यह ध्यान अन्तर्मुहुर्त तक होता है और उत्तमसंहननवाले जीवके होता है ॥ ३८ ॥