Book Title: Tattvarthsar
Author(s): Amrutchandracharya, Pannalal Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 243
________________ १९० सत्त्वार्थसार अर्थ-संयम, श्रुत, लेश्या, लिङ्ग, प्रतिसेवना, तीर्थ, स्थान और उपपाद' इन आठ अनुयोगों के द्वारा ऊपर कहे हुए मुनि आममके अनुसार विकल्प करमेके योग्य हैं। भावार्थ-संयम-पुलाक, वकुश और प्रतिसेवनाकुशील, सामाधिक तथा छेदोपस्थापना संयममें रहते हैं तथा कषाय कुशील सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसाधराय इन चार सयभीमें ह्ते हैं । निगन्थ और स्नातक एक यथाख्यातसंयममें ही होते हैं। श्रुत-पुलाक, वकुश और प्रतिसेवनाकुलीश उत्कृष्टतासे पूर्ण दशपूर्वके धारक होते हैं। कपायकुशील और निर्ग्रन्थ चौदहपूर्वके धारका हैं। जघन्यसे पुलाकका श्रुत आचारवस्तु प्रमाण होता है। बकुश, कुशील और निर्ग्रन्थ मुनियोंका जघन्य श्रुत अष्टप्रवचनमातृका मात्र होता है अर्थात् पाँच समिति तथा तीन गुप्तियोंके ज्ञानमात्र होता है । स्नातक श्रुतसे रहित केवली होते हैं। __लेश्या-पुलाकमुनिके पीत, पन और शक्ल ये तीन लेश्याएँ होती हैं। वकुश और प्रतिसेवनाकुशीलके छहों लेश्याएँ हो सकती हैं । यद्यपि चतुर्थसे सप्तम गुणस्थान तक सामान्यरूपसे तीन शुभ लेश्याएं हो आगममें बताई हैं तथापि वकुश और प्रतिसेवनाकुशील मुनियोंके उपकरणविषयक आराक्ति होनेसे कदाचित् किञ्चित् आर्तध्यान भी संभव है। उस आर्तध्यानके कालमें कुष्णादि तीन लेश्याएँ भी संभव होती हैं । छठवें गुणस्थामें निदानको छोड़कर शेष तीन प्रकारके आर्तध्यानोका सद्भाव आगममें प्रतिपादित है हो। सूक्ष्मसाम्पराय तथा निग्नन्थ और स्नातक मुनियोंके एक शुक्ललेश्या ही होती है । अयोगकेवली स्नातकोंके कोई भी लेश्या नहीं होती। लिङ्ग-द्रयलिङ्ग और भावलिङ्गकी अपेक्षा लिङ्ग दो प्रकारका है। इनमें भावलिङ्गको अपेक्षा पाँचों हो प्रकारके मुनि निर्ग्रन्थ-दिगम्वरमुद्राके धारक होते हैं और द्रब्यलिङ्ग-शरोरको अवगाहना, रङ्ग और पीछी आदिको अपेक्षा भाज्य हैं अर्थात् उनमें विशेषता होती है । अथवा लिङ्गका अर्थ वेद है । द्रव्यवेदकी अपेक्षा पाँचों प्रकारके मुनि पुरुषवेदी ही होते हैं परन्तु भाववेद की अपेक्षा छठवेसे नवम गुणस्थान तक रहनेवाले पुलाक, वकुश और कुशोल मुनियोंके तीनों वेद संभव हैं। निर्मन्थ और स्नातक मुनियोंके कोई भी वेद नहीं रहता। प्रतिसेवना-प्रतिसेवनाका अर्थ विराधना है। पाँच मलगुण-पाँच महाव्रत और रात्रिभोजनत्यागमेंस किसी एककी विराधना कदाचित् दूसरोंको जबर्दस्तीसे पुलाक मुनिके हो सकती है वह भी कारित और अनुमोदनाको अपेक्षा होती है कृतकी अपेक्षा नहीं। बकुश दो प्रकारके कहे गये हैं उपकरणवकुश और शरीरबकुश । जो बहुत प्रकारकी विशेषताओंसे युक्त उपकरणोंको इच्छा रखता है वह उपकरणवकुश है और जो शरीरका संस्कार करनेवाला है वह शरीरवकुश

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