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अष्टमाधिकार
इसीप्रकार मुक्त जीव भी स्थानवान हैं अर्थात् लोकाग्ररूप स्थानपर स्थित हैं अतः कदाचित् उनका भी नोचेकी ओर पतन हो सकता है, यह आशङ्का उठाना ठीक नहीं है क्योंकि स्थानसे युक्त होनेपर भी उनके आस्रवतत्त्वका अभाव हो चुका है इसलिये उनका पतन नहीं हो सकता। लोकमें किसी जहाजमें पानीका आस्रव-आगमन होनेपर ही उसका नीचेको ओर पतन होता है अन्यथा नहीं ॥ ११ ॥
गौरवका अभाव होनेसे भी मुक्त जीवका पतन नहीं होता है तथापि गौरवाभावान्न पातोऽस्य प्रसज्यते ।
घृन्तसम्बन्धविच्छेदे पतत्याम्रफलं गुरु ॥१२॥ अर्थ-स्थानवान होनेपर भी गुरुत्वका अभाव होनेके कारण मुक्त जीवके पतनका प्रसङ्ग नहीं आता क्योंकि ठण्डलसे सम्बन्ध विच्छेद होनेपर गुरुबजनदार आमका फल नीचे गिरता है।
भावार्थ-आमके दृष्टान्तसे स्पष्ट है कि गुरु-बजनदार वस्तुका ही नीचेकी ओर पतन होता है। गुरुत्व पुद्गलका स्वभाव है आत्माका नहीं, इसलिये मुक्त हो जानेपर आत्माका मोक्षस्थानसे पतन नहीं होता ॥ १२ ।।
___सिद्धोंमें परस्पर उपरोध-रुकावट नहीं है अल्पक्षेत्रे तु सिद्धानामनन्तानां प्रसज्यते | परस्परोपरोधोऽपि नावगाहनशक्तितः ।।१३।। नानादीपप्रकाशेषु मूर्तिमत्स्वपि दृश्यते |
न विरोधः प्रदेशेऽल्पे हन्तामूर्तेषु किं पुनः ॥१४॥ अर्थ—अल्पस्थानमें अनन्त सिद्ध रहते हैं परन्तु उनमें परस्पर उपरोध नहीं होता क्योंकि उनके अवगाहन शक्ति विद्यमान है। एक छोटेसे स्थानमें जब मूर्तिमान नाना दोपोंके प्रकाशमें भी परस्पर घात करनेवाला विरोध नहीं देखा जाता तब अमूर्तिक सिद्धोंमें तो हो ही कैसे सकता है ।। ५३-१४ ।।
आकारका अभाव होनेसे मुक्त जीवोंका अभाव नहीं होता आकाराभाक्तोऽभावो न च तस्य प्रसज्यते ।
अनन्तरपरित्यक्तशरीराकारधारिणः ॥१५॥ अर्थ-आकारका अभाव होनेसे मुक्त जीवके अभावका प्रसङ्ग नहीं आता क्योंकि मुक्तजीव, मुक्त होनेसे निकट पूर्वकालमें छोड़े हुए शरीरका आकार धारण करते हैं।