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तत्वार्थसार
लोको दुर्लभता वोधः स्वाख्यातच्चं वृषस्य च | अनुचिन्तनमेतेषामनुप्रेक्षा: प्रकीर्तिताः ||३०|
अर्थ ----अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव संवर, निर्जरा, लोक, और उनका बारबार निम्तन करना
बारह अनुप्रेक्षाएँ कही गई हैं ||२१-३०।।
अनित्यभावनाका लक्षण
कोडीकरोति
प्रथमं जातजन्तुभनित्यता । धात्री च जननी पश्चाद् धिग्मानुष्यमसारकम् ॥ ३१ ॥
अर्थ - उत्पन्न हुए जीवको सबसे पहले अनित्यता ही अपनी गोद में लेती है पृथिवी और माता पीछे 1 सार रहित मनुष्यपर्यायको चित्रकार हो ||३१|
अशरणभावना
उपघातस्य धीरेण मृत्युव्याघ्रेण देहिनः ।
देवा अपि न जायन्ते शरणं किमु मानवाः ||३२||
अर्थ - मृत्युरूपी भयंकर व्यात्र के द्वारा सूंघे हुए इस जीवको देव भी शरण नहीं हैं फिर मनुष्यों को तो बात ही क्या है ॥ ३२ ॥
संसारभावना
घटीमिव ।
चतुर्गतिघटीयन्त्रे सन्निवेश्य आत्मानं भ्रमत्ये हा कष्टं कर्मकच्छिकः ||३३||
अर्थ-बड़े दुःखकी बात है कि यह कर्मरूपी काछो इस जीवको चतुर्गतिरूपी हमें घरिया के समान लगाकर घुमाता रहता है ॥ ३३ ॥
एकत्व भावना
कस्यापत्यं पिता कस्य कस्याम्वा कस्य गेहिनी ।
एक एव भवाम्भोधौ जीवो भ्रमति दुस्तरे || ३४॥
अर्थ - किसका पुत्र, किसका पिता, किसकी माता और किसकी स्त्री। इस
दुस्तर संसारसागर में यह जीव अकेला ही घूमता है || ३४ ||
अन्यस्वभावना
अन्यः सचेतनो जीवो वपुरन्यदचेतनम् |
हा तथापि न मन्यन्ते नानात्वमनयोर्जनाः ||३५||