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तत्वार्यसार अर्थ-गुप्तिमें प्रवृत्ति करनेवाले मुनिके योगोंका निग्रह हो जाता है, इसलिये योगनिमित्तक आस्लवका अभाव होनेस शीघ्र ही संवर होता है ।। ५ ॥
समितियों के नाम ईर्याभाषणादाननिक्षेपोत्सर्गभेदतः ।
पश्च गुप्तावशशक्तस्य साधोः समितयः स्मृताः ॥६॥ अर्थ-जो साधु गुप्तियोंके धारण करनेमें असमर्थ है उसके ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण और उत्सर्गके भेदसे पाँच समितियाँ मानी गई हैं ॥६॥
ईर्यासमितिका लक्षण मागोंधोतोययोगानामालम्ब्यस्य च शुद्धिभिः ।
गच्छतः सूत्रमार्गेण स्मृतेयां समितियतेः ॥ ७ ॥ अर्थ—मार्ग, प्रकाश, उपयोग तथा उद्देश्यकी शुद्धिपूर्वक आगमोक्त विधिसे गमन करनेवाले मुनिके ईर्यासमिति मानी गई है ।
भावार्थ-तीर्थवन्दना तथा सद्गुरुके उपदेश श्रवण आदिके उद्देश्यसे मुनिका गमन होता है वह भी उस मार्गमें होता है जो सूक्ष्म तथा स्थूल जीवोंसे रहित हो तथा सुर्यके प्रकाशसे अच्छी तरह प्रकाशित हो । चलते समय मुनिका उपयोग मार्गके अवलोकनमें स्थिर होना चाहिये, क्योंकि अन्यमनस्क होकर चलने में जीवरक्षामें प्रमादका होना संभव है। आगममें मुनिको चलते समय चार हाथ प्रमाण भूमि देखकर चलनेकी आज्ञा है। इसी विधिसे जो चल रहा है ऐसे मुनिके ईर्यासमिति होती है ।। ७ ।।
भाषासमितिका लक्षण व्यलीकादिविनिर्मुक्तं सत्यासत्यामृषाद्वयम् ।
बदतः सूत्रमार्गण भाषासमितिरिष्यते ॥ ८ ॥ अर्थ-जो मुनि असत्यादिसे रहित, सत्य तथा अनुभव वचनोंको आगमके कहे अनुसार बोलता है उसके भाषासमिति मानी जाती है ।
भावार्थ-सत्य, असत्य, उभय और अनुभयके भेदसे वचनके चार भेद हैं । इनमें असत्य और उभयवचन मुनिके लिये त्याज्य हैं, शेष दो बचन ग्राह्य हैं। इन दो प्रकारके वचनोंको भी जो आगमके अनुसार अर्थात् हित, मित और प्रिय रूपसे बोलना है उसके भाषासमिति होती है ॥ ८॥