________________
जानकार
Las
अर्थ —सिक और प्रायोगिकके भेदसे बन्ध दो प्रकारका है। उनमेंसे मेघ आदिमें जो विजलीरूप अग्निका बन्ध है वह बेसिक बन्ध है और लाख तथा लकड़ी आदिका जो बन्ध है वह प्रायोगिक बन्ध जानने के योग्य है । इसके सिवाय कर्म और नोकर्मका जो बन्ध है वह भी प्रायोगिक बन्ध कहलाता है ॥ ६७ ॥
तमका लक्षण
तमो दृक्प्रतिबन्धः स्यात् प्रकाशस्य विरोधि च ||६८||
अथं – जो नेत्रोंको रोकनेवाला तथा प्रकाशका विरोधी है वह तमअन्धकार कहलाता है ॥ ६८ ॥
छायाका लक्षण
प्रकाशावरणं यत्स्यान्निमित्तं वपुरादिकम् । छायेति सा परिज्ञेया द्विविधा सा च जायते ||६९ || तत्रैका स्खलु वर्णादिविकारपरिणामिनी । स्यात्प्रतिविम्वमात्रान्या जिनानामिति शासनम् ॥ ७० ॥
अर्थ - शरीर आदि निमित्तोंके कारण जो प्रकाशका रुकना है उसे छाया जानना चाहिये । वह छाया दो प्रकारकी होती है । उनमें एक छाया वर्णादिविकाररूप परिणमने वाली है अर्थात् पदार्थ जिसरूप तथा जिस आकारवाला है उसका उसी रूप परिणमन होना जैसे दर्पण या पानी आदिमें प्रतिबिम्ब पड़ता है । और दूसरी छाया मात्र प्रतिबिम्बरूप होती है । जैसे धूप या चांदनी आदिमें मनुष्यको छाया पड़ती है। ऐसा जिनेन्द्र भगवान्का कथन है ||६९-७०।। आतप और उद्योतका लक्षण
आतपोऽपि प्रकाशः स्यादुष्णश्चादित्यकारणः । उद्योतश्चन्द्ररत्नादिप्रकाशः
परिकीर्तितः ॥ ७१ ॥
अर्थ- सूर्यके कारण जो उष्ण प्रकाश होता है वह आतप है और रत्न आदिका जो प्रकाश है वह उद्योत कहा गया है ।। ७१ ।।
तथा चन्द्रमा
भेदके भेद
उत्करश्चूर्णिका चूर्णः खण्डोऽणुचटनं तथा । प्रतरश्चेति षड्मेदा मेदस्योक्ता महर्षिभिः ||७२ ||