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तत्त्वार्थसार आभूषणोंमें कुछ और सोना-चाँदी आदि मिलवा कर दूसरे आभुषण बनवा लिये । ऐसा करनेपर आभूषणोंकी संख्या तो पहलेके ही समान रक्खी परन्तु उनकी मात्रामें वृद्धि कर ली। इस तरह भड-अभङ्गकी अपेक्षा व्रतमें अतिचार उत्पन्न हुआ । यही बात खेत और मकानके विषयमें समझना चाहिये 1 जैसे किसीने नियम लिया कि मैं अपने निर्वाह के लिये दो मकान और दो खेत रक्तूंगा। पीछे उनसे लगे हुए दूसरे मकान या खेत लेकर उन्हीं मकानों और खेतोंकी सीमामें वृद्धि कर ली। गिनती पहले के समान खखी परन्तु परिमाणमें वृद्धि हो गई। इस तरह भङ्ग-अभङ्गकी अपेक्षा अतिचार उत्पन्न हआ। गाय, भैंस आदि पशुओंको धन तथा गेहूँ, चना आदि अनाजको धान्य कहते हैं । प्रत धारण करते समय किसीने नियम लिया कि मैं चार गायें, उनके बछड़े और पचास मन धान्य रक्तूंगा 1 पोछे कोई अच्छी गाय दिखी अथवा आगे चलकर धान्यका भाव बढ़नेको संभावना दिखी इसलिये इस प्रकारके बँधानके साथ दूसरी माय या अधिक धान्यका सौदा करना कि हमारा सौदा पक्का रहा परन्तु इतने समय बाद हम लेंगे। पीछे पासके बछड़ों आदिको अलग कर नवीन गायको लेना और अपने पासका धान्य स्वच कर दुसरा धान्य खरीदना इस तरह भङ्गाभङ्गको अपेक्षा अतिचार हुआ। कम कीमतके दासी-दासको बदलकर उसी संख्याके भीतर अधिक कोमलके दासी-दासको लेना दासी-दासप्रमाणातिक्रम नामका अतिचार है। वर्तन और वस्त्रके विषयमें भी इसी विधिसे वृद्धि करने पर कुप्य प्रमाणातिक्रम नामका अतिचार होता है ।। ९०॥
विग्नतके पाँच अतिचार तिर्यव्यतिक्रमस्तद्वदध ऊर्चमतिक्रमौ ।
तथा स्मृत्यन्तराधानं क्षेत्रवृद्धिश्च पञ्च ते ॥११॥ अर्थ-तिर्यग्व्यतिक्रम, अधोव्यतिक्रम, कर्द्धव्यतिक्रम, स्मृत्यन्तराधान और क्षेत्रवृद्धि ये पाँच दिग्वतके अतिचार हैं।
भावार्थ-समान धरातलको सीमाका उल्लंघन करना तिर्यग्थ्यतिक्रम है । नीचे-कुआ, बावड़ी आदिमें उतरते समय गृहीत सीमाका उल्लंघन करना अधोव्यतिक्रम है। ऊपर किसी पर्वत आदिपर चढ़ते समय गृहीत्त सीमाका उल्लङ्घन करना ऊर्ध्वव्यतिक्रम है। व्रत धारण करते समय किसीने पचास कोश तक जानेका नियम लिया, पीछे मैंने पचास कोश तक जानेका नियम लिया था या चालीस कोश तक, इस प्रकार स्मृतिमें विकल्प आ जानेपर चालीस कोशसे आगे जाना स्मृत्यन्त राधान नामका अतिचार है। व्रत लेते समय किसीने चारों दिशाओंमें सौ-सौ कोश तक आने-जानेका नियम लिया, पीछे चलकर पूर्वदिशामें १२५ कोशपर एक कारखाना खुल गया वहाँसे माल