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चतुर्थाधिकार लाने पर अधिक लाभ दिखने लगा तथा पश्चिम दिशामें मौ कोला तक आने जाने में कोई लाभकी संभावना नहीं रही इसलिये पश्चिम दिशाकी सीमा २५ कोशकी कमीकर पूर्वदिशाको सीमामें २५ कोशको वृद्धि कर ली । इस तरह क्षेत्रवृद्धि नामका अतिचार होता है ।।९१ ॥
वेशनतके पांच अतिधार अस्मिन्नानयनं देशे शब्दरूपानुपातनम् ।
प्रेष्यप्रयोजन क्षेपः पुद्गलानां च पञ्च ते ॥१२॥ अर्थ-आनयन-सीमाके बाहर क्षेत्रसे किसी वस्तुको बुलाना, शब्बानुपात-सीमाके बाहर काम करनेवाले लोगोंको अपने शब्दोंसे सचेत करना, रूपानुपात-सीमाके बाहर काम करनेवाले लोगोंको अपनी सूरत दिखलाकर काममें सावधान करना, प्रेष्यप्रयोग-सीमाके बाहर स्वयं न जाकर नौकरके द्वारा काम कराना और पुद्गलक्षेप-सीमाके बाहर कङ्कड़ पत्थर वगैरह फेंकना, पत्र भेजना या फोन करना आदि देशवत्तके पांच अतिचार है ॥ ९ ॥
__ अनर्थदण्डव्रतके पाँच अतिचार असमीक्ष्याधिकरणं भोगानर्थक्यमेव च ।
तथा कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्याणि च पञ्च ते ॥१३॥ अर्थ-असममीक्ष्याधिकरण—निजका प्रयोजन अल्प होनेपर भी अधिक आरम्भ करना, भोगानथंक्य-भोगोपभोगको निरर्थक बस्तुओंका संग्रह करना, कन्दर्प-रागसे मिश्रित अशिष्ट वचन बोलना, कौत्कुच्य-अशिष्ट बचन बोलते हुए हाथ आदि अङ्गोंकी कुत्सित चेष्टा करना–खोटे संकेत करना और मौखर्य आवश्यकतासे अधिक बोलना-निरर्थक गप्प मारना ये पाँच अन्र्थदण्डव्रतके अतिचार हैं ।। ९३ ॥
सामायिक शिक्षाप्रतके पांच अतिचार त्रीणि दुःप्रणिधानानि बालमनःकायकर्मणाम् ।
अनादरोऽनुपस्थानं स्मरणस्येति पञ्च ते ॥१४॥ अर्थ--बधनदुःप्रणिधान—मन्त्र या पाठ आदिका अशुद्ध उच्चारण करना, मनोदुःप्रणिधान-मनको स्थिर नहीं रखना, कायदुःप्रणिधान---शरीरको हिलाना-डुलाना इधर-उधर देखना, तथा आसन बदलना आदि, अनावर-- मित्रोंकी गोष्टी छोड़कर अनादरपूर्वक सामायिक करना तथा स्मरणानुपस्थान