________________
A
द्वितीयाधिकार अर्थ-स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियोंके नाम तथा उनका क्रम है। इनके लक्षण इस प्रकार हैं
स्पर्शनेन्द्रिय-जो शीत, उष्ण, कोमल, कठोर, स्निग्ध, रूक्ष, लघु और मुरु इन आठ प्रकारके स्पर्शोको जाने उसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं। __रसनेन्द्रिय-जो खट्टा, मीठा, कड़आ, कषायला और चिरपिरा इन पांच प्रकारके रसको जाने वह रसनेन्द्रिय है।
घ्राणेन्द्रिय-जो सुगन्ध और दुर्गन्धके भेदसे दो प्रकारको गन्धको जाने उसे नाणेन्द्रिय कहते हैं।
चक्षुरिन्द्रिय-जो काला, पीला, नीला, लाल और सफेद इन पांच भूल रंगोंको तथा इनके सम्बन्धसे निर्मित अनेक उपरंगोंको जानती है उसे चक्षुरिन्द्रिय कहते हैं। __ श्रीन्द्रिय-जो अक्षरात्मक तथा निरक्षरात्मक शब्दोंको जानती है उसे श्रोत्रेन्द्रिय कहते हैं ।। ४७ ।।
पांच इन्द्रियों तथा मनका विषय स्पर्शो रसस्तथा गन्धो वर्णः शब्दो यथाक्रमम् ।
विज्ञेया विषयास्तेषां मनसस्तु मतं श्रुतम् ॥४८॥ अर्थ-स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द ये क्रमस स्पर्शनादि इन्द्रियों के विषय जानना चाहिये । मनका विषय श्रुत-अक्षरात्मक श्रुत है॥४८॥
इन्द्रियाँ अपने विषयको किस प्रकार ग्रहण करती हैं ? रूपं पश्यत्यसंस्पृष्टं स्पृष्टं शब्दं शृणोति तु ।
बद्धं स्पृष्टं च जानाति स्पर्श गन्धं तथा रसम् ।।४।। अर्थ-चक्षु असंस्पृष्ट-दूरवर्ती रूपको देखती है। कान स्पृष्ट-अपनेसे छुए हुए शब्दको सुनता है। स्पर्शन इन्द्रिय, रसना इन्द्रिय और घ्राण इन्द्रिय, बद्ध--अपनेसे संबन्धको प्राप्त तथा स्पृष्ट-छुए हुए अपने-अपने विषयभूत स्पर्श, रस और गन्धको जानती हैं। ___ भावार्थ-चक्षु इन्द्रिय अप्राप्यकारी है इसलिये वह अपनेसे दूरवर्ती रूपको देखती हैं। कणेन्द्रिय प्राप्यकारी होनेके कारण अपनेसे टकराये हुए शब्दको सुनती है । शब्द कानसे टकराकर विलीन हो जाता है, स्पर्श आदिके समान ... १ 'पुट्ट सुणोदि सई अपुष्टुं पुण पस्सदे रुवं । फासं रसं च गंध बर्द्ध पट्ट वियाणादि ।।'
-सर्वार्थसिद्धि ( सोलापुर संस्करण )।