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सत्त्वायंसार अर्थ-ये द्रव्य नित्य हैं क्योंकि अपने स्वभावसे नष्ट नहीं होते। अपना स्वभाव ही प्रत्यभिज्ञानका कारण कहा जाता है !
भावार्थ—'यह वही है जो पहले था' इस प्रकारके ज्ञानको प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। द्रव्योंकी पर्यायोंके बदल जानेपर भी उनमें प्रत्यभिज्ञान होता रहता है इसलिये द्रव्य नित्य कहलाती है। 'नित्यं तदेवेदमिति प्रतीते:' द्रव्य नित्य है क्योंकि उसमें 'यह वही है, ऐसी प्रतीति होती रहती है, ऐसा समन्तभद्रस्वामीने भी कहा है ।। १४।।
ध्योंके अवस्थितपनेका वर्णन इयत्तां नातिवर्तन्ते यतः पडिति जातुचित् ।
अवस्थितत्त्वमेतेषां कथयन्ति ततो जिनाः ॥१६॥ अर्थ-क्योंकि ये द्रव्य कभी भी 'छह हैं' इस सीमाका उल्लङ्घन नहीं करते इसलिये जिनेन्द्र भगवान् उनके अवस्थितपनेको कहते हैं ।। १५ ।।
ब्रव्योंके रूपी और अरूपोपनेका वर्णन शब्दरूपरसस्पर्शगन्धात्यन्तव्युदासतः ।
पश्च द्रव्याण्यरूयाणि रूपिणः पुद्गलाः पुनः॥१६॥ अयं-शब्द, रूप, रस, स्पर्श और गन्धका अत्यन्त अभाव होनेसे पांच द्रव्य अरूपी हैं और उनके सद्भावसे पुद्गल द्रव्य रूपी है ।। १६ ।।
द्रव्योंको संख्याका वर्णन धर्माधर्मान्तरिक्षाणां द्रव्यमेकत्यमिष्यते ।
कालपुद्गलजीवानामनेकद्रव्यता मता ॥१७॥ अर्थ-धर्म, अधर्म और आकाश ये तीन द्रव्य एक-एक हैं तथा काल, पुद्गल और जीवद्रव्योंमें अनेकता मानी गई है। ___ भावार्थ-कालद्रव्य असंख्यात हैं, जीव अनन्त हैं और पुद्गल उनसे अनन्त हैं। धर्म, अधर्म तथा आकाश एक-एफ द्रव्य हैं ।। १७ ॥
द्रव्योंमें सक्रिय और निष्क्रियपनेका विभाग धर्माधर्मो नमः कालश्चत्वारः सन्ति निःक्रियाः । जीवाश्च पुलाश्चैव भवन्त्येतेषु सक्रियाः ॥१८॥