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तृतीयाधिकार गुण और पर्यायके पर्यायवाचक शब्द सामान्यमन्त्रयोत्सर्गौ शब्दाः स्युर्गुणवाचकाः।
व्यतिरेको विशेषश्च भेदः पर्यायवाचकाः ॥१०॥ अर्थ- सामान्य, अन्वय और उत्सर्ग ये मणवाचक शब्द है तथा वर्गातरेक, विशेष और भेद ये पर्याय शब्द कहे गये हैं ॥ १० ॥
गुण और द्रव्यमें अभेद है. गुणविना न च द्रव्यं विना द्रव्याच्च नो गुणाः।
द्रच्यस्य च गुणानां च तस्मादव्यतिरिक्तता ॥११॥ अर्थ-गुणोंके बिना द्रव्य और द्रध्यके विना गुण नहीं होते, इसलिये द्रव्य और गुणोंमें अभेद है ।। ११ ॥
द्रव्य और पर्यायको अभिन्नता न पर्यायाद्विना द्रव्यं विना द्रव्यान्न पर्ययः ।
वदन्त्यनन्यभूतत्वं द्वयोरपि महर्षयः ॥१२॥ अर्थ-पर्यायके विना द्रव्य और द्रव्यके विना पर्याय नहीं होती, इसलिये महर्षि दोनों में अभिन्नता कहते हैं ॥ १२ ॥
पर्याय ही उत्पाद तथा व्ययके करनेवाले हैं न च नाशोऽस्ति भावस्य न चाभावस्य सम्भवः ।
भावाः कुर्युव्येयोत्पादौ पर्यायेषु गुणेषु च ॥१३॥ अर्थ-सत्का नाश और असत्की उत्पत्ति नहीं होती, इलिये पर्याय ही पर्यायों और गुणोंमें व्यय तथा उत्पादको करते हैं।
भावार्थ-द्रव्यदृष्टिसे किसी पदार्थका न नाश होता है और न किसी पदार्थ की उत्पत्ति होती है, सिर्फ पर्याय ही नष्ट होती तथा उत्पन्न होती है, इस तरह उत्पाद और व्ययका कर्ता पर्याय ही है ।। १३ ।।
द्रव्योंकी नित्यताका वर्णन द्रव्याण्येतानि नित्यानि तद्भावाब व्ययन्ति यत् । ...... प्रत्यभिज्ञानहेतुत्वं तद्रावस्तु निगद्यते ॥१४॥