________________
द्वितीयाधिकार
१०३
वर्तमान में अवलम्बन, ले रहे हैं. उसमें वर्तमानका जिनका अवलम्बन ले चुके हैं उनमें भूतका और जिनका अवलम्बन आगे लेवेंगे उनमें भविष्यत्का व्यवहार होता है । कालाणु अपने-अपने स्थानोंपर स्थित हैं उनका निमित्त पाकर संसारके पदार्थों में परिणमन चल रहा है। जो कालाणु किसी द्रव्यके परिणमनमें निमित्त हो चुकनेसे भूतका व्यवहार प्राप्त करता है वही का किसी अन्य द्रव्यके परिणमन में आगे निमित्त होनेके कारण भविष्यत्का व्यवहार प्राप्त करता है तथा किसी अन्य द्रव्यके वर्तमान परिणमनमें निमित्त होने के कारण वही वर्तमानका व्यवहार करता है । इस प्रकार कालाणुमें यह भूत, भविष्यत् और वर्तमानका व्यवहार मुख्य तथा गौणरूपसे चलता रहता है । जब निश्चयकालद्रव्य में यह मुख्य गौणसे भूतादिका व्यपदेश चलता है तब उसके आश्रयसे होनेवाले व्यवहार कालमें भी मुख्य गौणका व्यपदेश अनायास सिद्ध हो जाता है ।। ५१-५४ ॥
पुदुगलका लक्षण
भेदादिभ्यो निमित्तेभ्यः पूरणाद्गलनादपि । पुद्गलानां स्वभावज्ञः कथ्यन्ते पुद्गला इति || ५५ ||
अर्थ-भेद आदिके निमित्तसे जिनमें पूरण-नये परमाणुओं का संयोग और गलन — संयुक्त परमाणुओंका वियोग होता है उन्हें पुद्गलोंके स्वभावके ज्ञाता पुरुष पुद्गल कहते हैं ।। ५५ ॥
पुद्गलोंके भेद
अणुस्कन्धविमेदेन द्विविधाः खलु पुद्गलाः ।
स्कन्धो देशः प्रदेशश्च स्कन्धस्तु त्रिविधो भवेत् ॥ ५६ ।।
अर्थ - अणु और स्कन्धके भेदसे पुद्गल दो प्रकार के हैं। और स्कन्ध, देश तथा प्रदेश के भेद स्कन्ध तीन प्रकारका है ॥ ५६ ॥
स्कन्ध, देश और प्रदेशके लक्षण
"अनन्तपरमाणूनां संघातः स्कन्ध इष्यते ।
देशस्तस्यार्द्धर्द्धार्द्ध प्रदेशः परिकीर्तितः || ५७ ||
अर्थ —– अनन्त परमाणुओं का समूह स्कन्ध कहलाता है । स्कन्धका आधा देश और देशका आधा प्रदेश कहा गया है ।। ५७ ॥
१ बंधं सल्यसमत्थं तस्स व अद्धं भति देसो त्ति ।
अद्धद्धं च पदेसो अविभागी चैव परमाणू ।। ६०३ || गोम्मटसार जीवकाण्ड