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द्वितीयाधिकार अर्थ-सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपादके भेदसे सर्वज्ञ भगवान्ने जीवोंका जन्म तीन प्रकारका कहा है। पोत, अण्डज और जरायुज जीव गर्भजन्म वाले हैं, नारकी और देव उपपाद जन्मवाले हैं और शेष जीव सम्मूर्छन जन्मवाले हैं।
भावार्थ-सम्मूर्च्छनादि जन्मोंके लक्षण इस प्रकार है।
सम्मूच्र्छन जन्म–इधर-उधरके परमाणुओंके मिलनेसे जो जन्म होता है उसे सम्मूच्र्छन जन्म करते हैं।
गर्भजन्म---रतिक्रियाके बाद स्त्री-पुरुषके रज और वीर्यके संयोगसे जो जन्म होता है उसे गर्भजन्म कहते हैं।
उपपादजन्म-निस्चित उपपाद शय्याओं पर जो जन्म होता है उसे उपपाद जन्म कहते हैं।
जिनके शरीरके साथ गर्भ में कोई थैली आदिका आवरण नहीं रहता तथा उत्पन्न होते ही जो चलने लगते हैं ऐसे सिंह, व्याघ्र आदि जीब पांत कहलाते हैं। अण्डेसे जिनका जन्म होता है ऐसे पक्षी अण्डज कहलाते हैं। जिनक शरीरके साथ एक प्रकारको मांसकी थैलीका आवरण रहता है ऐसे मनुष्य तथा गाय भैंस आदि जरायुज कहलाते हैं। इन तीनों प्रकारके जीवोंके गर्भजन्म होता है। देव और नारकियों की उपपाद शय्याएं निश्चित हैं उनपर आत्माके प्रदश जव पहुँचते हैं तब अन्तर्महर्त में पूर्ण शरीरकी रचना अपने आप हो जाती है। इनके सिवाय अन्य जितने जीव हैं उन सबका संमूछन जन्म होता है ॥ १०३-१०४ ।।
नौ योनियों तथा उनके स्वामियोंका वर्णन योनयो नव निर्दिष्टास्त्रि विधस्यापि जन्मनः ॥१०॥ सचित्तशीतविधृता अचित्ताशीतसंवृताः । सचित्ताचित्तशीतोष्णौ तथा विकृतसंवृतः ॥१०६।। योनिनारकदेवानामचित्तः कथितो जिनैः । गर्भजानां पुनर्मिश्रः शेषाणां त्रिविधो भवेत् ॥१०७॥ उष्णः शीतच देवानां नारकाणां च कीर्तितः। उष्णोऽग्नि कायिकानां तु शेषाणां त्रिविधो भवेत् ॥१०८।। नारकैकाक्षदेवानां योनिर्भवति संवृतः । विकृतो विकलाक्षाणां मिश्रः स्याद्गर्भजन्मनाम् ।।१०१।।