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तत्त्वार्थसार
देवोंके अवान्तर भेद
दशधा भावना देवा अष्टधा व्यन्तराः स्मृताः । ज्योतिष्काः पञ्चधा ज्ञेयाः सर्वे वैमानिका द्विधा ॥ २१४॥
अर्थ - भवनवासी दश प्रकारके, व्यन्तर आठ प्रकारके, ज्योतिष्क पाँच प्रकारके और सभी वैमानिक दो प्रकारके जानना चाहिये ।। २१४ ।।
वश प्रकारके भवनवासी देव
नागासुरसुपर्णाग्निदिग्वातस्तनितोदधिः
द्वीपविद्युत्कुमारख्या दशधा भावनाः स्मृताः ॥ २१५ ॥
अर्थ - नागकुमार, असुरकुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, दिक्कुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और विद्युत्कुमार ये दश प्रकार के भवनवासी देव माने गये हैं || २१५ ||
आठ प्रकारके व्यन्तर देव
किन्नराः किम्पुरुषाश्च गन्धर्वाश्च महोरगाः । यक्षराक्षसभूताश्च पिशाचा व्यन्तराः स्मृताः ॥ २१६ ॥
अर्थ — किन्नर, किम्पुरुष, गन्धर्व, महोरग, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ये आठ प्रकारके व्यत्तर स्मरण किये गये हैं ॥ २१६ ॥
ज्योतिष्क देवोंके पाँच भेव
सूर्याचन्द्रमसौ चैव ग्रहनक्षत्रतारकाः ।
ज्योतिष्काः पञ्चधा ज्ञेया ते चलाचलभेदतः ॥ २१७॥
अर्थ - सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और ताराके भेदसे ज्योतिष्कदेव पाँच प्रकार के जानना चाहिये । ये ज्योतिष्क देव चल और अचलके भेदसे दो प्रकारके हैं । अढ़ाई देवके ज्योतिष्क द्वीप चल हैं और उसके बाहरके अचल - अवस्थित हैं ।। २१७ ॥
वैमानिक देवोंके दो भेद
कम्पोपपन्नास्तथा कल्पातीता ते वैमानिका द्विधा ।
अर्थ- कल्पोपपन्न और कल्पातीतके भेदसे वैमानिक देव दो प्रकारके हैं । सोलहवें स्वर्ग तक्के देव कल्पोपपत्र और उसके आगेके कल्पातीत कहलाते हैं ।