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________________ ८४ तत्त्वार्थसार देवोंके अवान्तर भेद दशधा भावना देवा अष्टधा व्यन्तराः स्मृताः । ज्योतिष्काः पञ्चधा ज्ञेयाः सर्वे वैमानिका द्विधा ॥ २१४॥ अर्थ - भवनवासी दश प्रकारके, व्यन्तर आठ प्रकारके, ज्योतिष्क पाँच प्रकारके और सभी वैमानिक दो प्रकारके जानना चाहिये ।। २१४ ।। वश प्रकारके भवनवासी देव नागासुरसुपर्णाग्निदिग्वातस्तनितोदधिः द्वीपविद्युत्कुमारख्या दशधा भावनाः स्मृताः ॥ २१५ ॥ अर्थ - नागकुमार, असुरकुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, दिक्कुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और विद्युत्कुमार ये दश प्रकार के भवनवासी देव माने गये हैं || २१५ || आठ प्रकारके व्यन्तर देव किन्नराः किम्पुरुषाश्च गन्धर्वाश्च महोरगाः । यक्षराक्षसभूताश्च पिशाचा व्यन्तराः स्मृताः ॥ २१६ ॥ अर्थ — किन्नर, किम्पुरुष, गन्धर्व, महोरग, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ये आठ प्रकारके व्यत्तर स्मरण किये गये हैं ॥ २१६ ॥ ज्योतिष्क देवोंके पाँच भेव सूर्याचन्द्रमसौ चैव ग्रहनक्षत्रतारकाः । ज्योतिष्काः पञ्चधा ज्ञेया ते चलाचलभेदतः ॥ २१७॥ अर्थ - सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और ताराके भेदसे ज्योतिष्कदेव पाँच प्रकार के जानना चाहिये । ये ज्योतिष्क देव चल और अचलके भेदसे दो प्रकारके हैं । अढ़ाई देवके ज्योतिष्क द्वीप चल हैं और उसके बाहरके अचल - अवस्थित हैं ।। २१७ ॥ वैमानिक देवोंके दो भेद कम्पोपपन्नास्तथा कल्पातीता ते वैमानिका द्विधा । अर्थ- कल्पोपपन्न और कल्पातीतके भेदसे वैमानिक देव दो प्रकारके हैं । सोलहवें स्वर्ग तक्के देव कल्पोपपत्र और उसके आगेके कल्पातीत कहलाते हैं ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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