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द्वितीयाधिकार अर्थ असंख्यातवर्षकी आयुवाले भोगभूमिके मनुष्य और तिर्यञ्च, चरमोतमदेहके धारक मनुष्य, देव और नारको इनकी अपमृत्यु नहीं होती ।। १३५ ।।
भावार्थ-विष, वेदना, रक्तक्षय, शस्त्राघात, संक्लेश, श्वासनिरोध तथा अन्नपाननिरोध आदि कारण मिलनेपर आयुकर्मके निषेकोंका युगपत् खिर जाना अपमृत्यु कहलाती है। यह अपमृत्यु भोगभूमिके मनुष्य, तिर्यञ्च, देव, नारको और चरमशरीरी जीवोंकी नहीं होती। शेष जीवोंकी अपमृत्यु हो सकती है॥१३५ ।।
नरकोंमें शरीरकी ऊँचाईका वर्णन धम्मायां सप्त चापानि सपादं च करत्रयम् ।
उत्सेधः स्यात्ततोऽन्यासु द्विगुणो द्विगुणो हि सः॥१३६॥ अर्थ वर्मा पृथिवीमें नारकियोंकी ऊँचाई सात धनुष सवा तीन हाथ है और उससे नीचे अन्य पृथिवियोंमें दूनी-दुनी है । ( इस तरह दूनी होती होती सातवीं पृथिवीमें पांचसौ धनुषकी ऊँचाई हो जाती है । ) ।। १३६ ॥
मनुष्योंके शरीरको ऊँचाईका वर्णन शतानि पञ्च चापानां पञ्चविंशतिरेव च । प्रकर्षेण मनुष्याणामुन्सेधः कर्मभूमिषु ॥१३७॥ एकाक्रोशोजघन्यासु द्वौ कोशौ मध्यमासु च ।
क्रोशत्रयं प्रकृष्टासु भोगभूषु समुन्नतिः ।।१३८।। अर्थ-कर्मभूमिमें मनुष्योंकी ऊँचाई उत्कृष्टरूपसे पाँचसौ पच्चीस धनुप है। जघन्य भोगभूमिमें एक कोश, मध्यम भोगभूमिमें दो कोश और उत्तम भोगभूमिमें तीन कोश है ।। १३७-१३८ ।।
व्यन्तर, ज्योतिष्क और भवनवासी देवोंको अंधाई ज्योतिष्काणां स्मृताः सप्तासराणां पञ्चविंशतिः ।
शेषभावनभौमानां कोदण्डानि दशोमतिः ॥१३९॥ अर्थ-ज्योतिष्कदेवोंको सात धनुष, भवनवासियोंमें असुरकुमारोंकी पच्चीस धनुष और शेष भवनवासी तथा व्यन्तरदेवोंकी ऊँचाई दश धनुष है ।। १३९॥