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द्वितीयाधिकार
भवनवासी देवोंकी उत्कृष्ट तया जघन्य आयु भावनानां भवत्यायुः प्रकृष्टं सागरोपमम् ।
दशवर्षसहस्रं तु जघन्यं परिभाषितम् ॥१२६।। अर्थ-भवनवासी देवोंकी उत्कृष्ट आयु एकसागर प्रमाण तथा जघन्य आयु दश हजार वर्ष प्रमाण कही गई है ।। १२६ ।।
___अन्तर देवोंको उत्कृष्ट तथा जघन्य आयु पल्योपमं भवत्यायुः सातिरेकं प्रकर्षतः ।
दशवर्षसहस्रं तु व्यन्तराणां जघन्यतः ॥१२७॥ अर्थ-व्यन्तर देवोंकी उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक एकपल्य प्रमाण और जघन्य आयु दश हजार वर्ष प्रमाण है ।। १२७ ।।
ज्योतिष्कदेवोंको उत्कृष्ट तथा जघन्य आयु पन्योपमं भवत्यायुः सातिरेकं प्रकर्षतः ।
पल्योपमाष्टभागस्तु ज्योतिष्काणां जयन्यतः ॥१२८।। अर्थ-ज्योतिष्कदेवोंकी उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक एक पल्य और जघन्य आयु पल्यके आठवें भाग प्रमाण है।
भावार्थ-ज्योतिष्कदेवोंमें पल्यसे कुछ अधिक आयुका विवरण इस प्रकार है-पन्द्रमाकी एक लाख वर्ष अधिक पल्य, सूर्यको एक हजार वर्ष अधिक एकपल्य, शुक्रकी सौ वर्ष अधिक एकपल्य, बृहस्पतिकी पूर्ण एकपल्य, शेप ग्रहोंकी आधा पल्य, नक्षत्रोंकी आधा पल्य और ताराओंकी चौथाई पल्य उत्कृष्ट स्थिति है १२८ ॥
वैमानिक देवोंको उत्कृष्ट और अधन्य आयु द्वयोद्धयोरुभी सप्त दश चैव चतुर्दश | षोडशाष्टादशाप्येते सातिरेकाः पयोधयः ॥१२९।। समुद्रा विंशतिश्चैव तेषां द्वाविंशतिस्तथा । सौधर्मादिषु देवानां भवत्यायुः प्रकर्पतः ॥१३०॥ एकैकं वर्द्धयेदब्धि नवगैरेय केम्वतः । नवस्वनुदिशेषु स्याद् द्वात्रिंशदविशेषतः ।।१३।।