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द्वितीयाधिकार
स्तो नारीनरकान्ते च सुवर्णार्जुनकूलिके । रक्तारतोदके च स्तो द्वे द्वे क्षेत्रे च निम्नगे ॥ २०३ ॥ पूर्व सागरगामिन्यः पूर्वा नद्यो द्वयोर्द्वयोः । परिमार्णवगामिन्यः परिचास्तुनयोर्मताः ॥ २०४॥ गङ्गासिन्धुपरीवारः सहस्राणि चतुर्दश । नदीनां द्विगुणास्तिस्रस्तितोऽर्द्धार्द्धहापनम् || २०५ ||
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अर्थ — गङ्गा सिन्धु, रोहित रोहितास्या, हरित् हरिकान्ता, शीता शीतोदा, नारी नरकान्ता सुवर्णकूला रूप्यकूला और खता रक्तोदा इन सात युगलोंकी चौदह महानदियाँ हैं। जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रों में प्रत्येक क्षेत्र में दो-दो नदियाँ बहती हैं । दो-दो नदियोंके युगलमें पहली नदी पूर्व समुद्रकी ओर जाती है और दूसरी नदी पश्चिम समुद्रकी ओर गमन करती हैं। गङ्गा-सिन्धुका सहायक परिवार चौदह हजार नदियां हैं। इसके आगे तीन युगलोंकी सहायक नदियोंका परिवार दूना चुना है और उसके आगे तीन घुगलोंका परिवार आधा-आधा होता जाता है ।। २०२ - २०५ ।।
क्षेत्र तथा पर्वतोंके विस्तारका वर्णन दशोन द्विशतीभक्तो जम्बूद्वीपस्य विस्तरः | विस्तारो भरतस्यासौ दक्षिणोत्तरतः स्मृतः ॥ २०६ ॥ द्विगुणद्विगुणा वर्षधरवर्षास्वतो मताः । आविदेद्दात्ततस्तु स्युरुत्तरा दक्षिणैः समाः ॥ २०७॥
अर्थ — जम्बूद्वीपके विस्तार अर्थात् एक लाख योजन में एकसी नब्बे योजनका भाग देनेपर जो लब्ध आता है उतना अर्थात् ५२६६ योजन भरत क्षेत्रका दक्षिणसे उत्तर तक विस्तार माना गया है । आगेके कुलाचल और क्षेत्र दूने-दूने विस्तार वाले हैं | यह दूने-ने विस्तारका क्रम विदेह क्षेत्र तक ही है । उत्तरके कुलाचल और क्षेत्र दक्षिणके कुलाचल और क्षेत्रोंके समान हैं ।। २०६ -२०७ ।। कालचक्रका परिवर्तन कहाँ होता है ?
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उत्सर्पिण्यवसर्पिण्यौ पट्स मे वृद्धिहानिदे । भरतैरावतौ मुक्त्वा नान्यत्र भवतः क्वचित् ॥२०८॥ अर्थ-छह कालोंसे युक्त तथा वृद्धि और हानिको देनेवाली उत्सर्पिणी और
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