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तत्वार्थसार
पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हैं। इनके नाम हैं - १ हिमवान् २ महाहिमवान् ३ निव ४ तील ५ रुक्मी और ६ शिखरी । ये पर्वत वर्षधर पर्वत अर्थात् कुलाल क जाते हैं। ये छहों पर्वत क्रमसे सुवर्ण, चाँदी, सुवणं, नीलमणि, चाँदी तथा सुवर्णसे निर्मित हैं अर्थात् उनके समान वर्णवाले हैं ।। १९४-१९६ ।।
कुलाचलोंपर स्थित सरोवरोंका वर्णन
पद्मस्तथा महापद्मस्तिगिञ्छः केशरी तथा । पुण्डरीको महान् क्षुद्रो हृदा वर्षधराद्रिषु ॥ १९७॥ सहस्र योजनायाम आग्रस्तस्यार्द्धविस्तरः | द्वितीयो द्विगुणस्तस्मात्तृतीयो द्विगुणस्ततः ।। १२८|| उत्तरा दक्षिणैस्तुल्या निम्नास्ते दशयोजनीम् । प्रथमे परिमाणेन योजनं पुष्करं हृदे ॥ १९९॥ द्विचतुर्योजनं ज्ञेयं तद् द्वितीयतृतीययोः । अपाच्यवदुदीच्यानां पुष्कराणां प्रमाश्रिताः || २००|| श्रीश्च ह्रीश्च धृतिः कीर्तिर्बुद्धिलक्ष्मीश्च देवताः । पल्योपमायुषस्तेषु पर्वत्सामानि कान्विताः || २०१ ॥
अर्थ -- उन कुलाचलोंपर क्रमसे पद्म, महापद्म, तिमिञ्छ, केशरी, महापुण्डरोक और पुण्डरीक नामके छह सरोवर हैं। पहला सरोवर एक हजार योजन लम्बा और पाँच सौ योजन चौड़ा है। दूसरा सरोवर इससे दूना है और तीसरा सरोवर दूसरेसे दूना है। उत्तरके तीन सरोवर दक्षिण के सरोवरीके समान विस्तारवाले हैं। ये सभी सरोबर दश योजन गहरे हैं। पहले सरोबरमें एक योजन विस्तारवाला कमल है । दूसरे सरोवरमें दो योजन विस्तारवाला और तीसरे सरोवरमें चार योजन विस्तारवाला कमल है । उत्तरके कमलोंका प्रमाण दक्षिणके कमलोंके समान है । उन कमलोंपर क्रमसे श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, और लक्ष्मी नामकी देवियाँ रहती हैं। ये देवियां एक पल्यकी आयुवाली हैं तथा पारिषत्क और सामानिक जाति के देवोंसे सहित है ।। १९७- २०१ ।।
चौदह महानवियोंका वर्णन
गङ्गा सिन्धू उभे रोहिद्रोहितास्ये तथैव च । ततो हरिद्धरिकान्ते च शीताशीतोदके तथा ॥ २०२ ॥