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तत्त्वार्थसार असंशिनस्तथा मत्स्थाः कर्मभूजाश्चतुष्पदाः । मनुष्याश्चैव जीवन्ति पूर्वकोटि प्रकर्पतः ।।१२।। एक द्वे त्रीणि पल्यानि नृ-तिरश्चां यथाक्रमम् । जघन्यमध्यमोत्कृष्टभोगभूमिषु जीवितम् । कुमोगभूमिजानां तु पल्यमेकं तु जीवितम् ॥१२२।।
(षट्पदम् ) अर्थ-पृथिवीकायिकजीवोंकी उत्कृष्ट आयु बाईस हजार वर्ष, जलकायिकजीवोंकी सात हजार वर्ष, बनस्पतिकायिकजीवोंकी दश हजार वर्ष, वायुकाधिकजीवोंकी तीन हजार वर्ष, पक्षियोंकी वहत्तर हजार वर्ष, सर्पोकी व्यालीस हजार वर्ष, तीन इन्द्रिय जीवोंकी उनचास दिन, अग्निकायिकको तीन दिन, चौइन्द्रिय जीवोंकी छह माह, छातीसे सरकनेवाले अजगर आदिको नो पूर्वाल, दो इन्द्रियोंकी बारह वर्ष, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंञ्च, मच्छ, कर्मभूमिज चौपाये और मनुष्योंकी एक करोड़ पूर्व वर्ष, जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट भोगभूमिके मनुष्य तथा तिर्मञ्चोंकी क्रामसे एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्य तथा कुभोगभूमिज मनुष्य और तिर्यञ्चोंकी एक पल्य प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है ।। ११७-१२२६॥
नारकियोंको उत्कृष्ट और जघन्य आयुका वर्णन एक त्रीणि तथा सप्त दश सप्तदशेति च । द्वाविंशतिस्त्रयस्त्रिंशद् घर्मादिषु यथाक्रमम् ॥१२३।। स्यात्सागरोपमाण्यायु रकाणां प्रकर्षतः । दशवर्षसहस्राणि घम्मायां तु जघन्यतः ॥१२४।। वंशादिषु तु तान्येकं त्रीणि सप्त तथा दश ।
तथा सप्तदश द्वथना विंशतिश्च यथोत्तरम् ॥१२५।। अर्थ-धर्मा, वंशा, मेघा, अञ्जना, अरिष्टा, मघवी और माघवी इन सात पृथिवियोंमें रहनेवाले नारकियोंकी उत्कृष्ट आयु क्रमसे एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सत्तरह सागर, बाईस सागर और तेतीस सागर प्रमाण है। घर्मा पृथिवीमें जघन्य आय दश हजार वर्ष है तथा वंशा आदि पृथिवियोंमें क्रमसे एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सत्तरह सागर और बाईस सागर प्रमाण है ॥ १२२-१२५ ।।।