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तस्वार्थसार बैमानिक देवोंको ऊँचाईका वर्णन द्वयो सप्त द्वयोः षट् च हस्ताः पञ्च चतुर्वतः। ततश्चतुषु चच्चारः सार्दाश्चातो द्वयोस्त्रयः ॥१४॥ द्वयोस्त्रयश्च कल्पेषु समुत्सेधः सुधांशिनाम् | अधोवेयकेषु स्यात्सार्द्ध हस्तद्वयं यथा ॥१४१॥ हस्तद्वितयसत्सेधो मध्यग्रेवेयकेषत! अन्त्यवेयकेषु स्याद्धस्तोऽप्यसमुन्नतिः । एकहस्तसमुत्सेधो विजयादिषु पञ्चसु ॥१४२॥
(षट्पवम् ) अर्थ-सौधर्म और ऐशान इन दो स्वर्गों में देवोंको ऊँचाई सात हाथ, सानकुमार और माहेन्द्र इन दो स्वर्गोमें छह हाथ, ब्रह्मा-ब्रह्मोक्तर-लान्तर और कापिष्ट इन चार स्वर्गों में पांच हाथ, शुक्र-महाशुक्र-शतार और सहस्रार इन चार स्वर्गोंमें चार हाथः आनत और प्राणत इन दो स्वर्गोमें साढ़े तीन हाथ, आरण और अच्युत इन दो स्वर्गों में तीन हाथ, अधोगवेयकके तीन विमानोंमें अढ़ाई हाथ, मध्यम अवेयकके तीन विमानोंमें दो हाथ, अन्तिम ग्रंवेयकके तीन विमानों तथा अनुदिशोंमें डेढ़ हाथ और विजयादिक पाँच अनुत्तरविमानोंमें एक हाथकी ऊँचाई है ॥ १४०-१४२ ।।
एकेन्द्रियादि तियनोंको उत्कृष्ट अवगाहना योजनानां सहस्रं तु सातिरेकं प्रकर्पतः । एकेन्द्रियस्य देहः स्याद्विज्ञेयः स च पमिनि ॥१४३॥ त्रिकोशः कथितः कुम्भी शङ्खो द्वादशयोजनः।
सहस्रयोजनो मत्स्यो मधुपश्चैकयोजनः ॥१४४॥ अर्थ–एकेन्द्रियजीबका शरीर उत्कृष्टतासे कुछ अधिक एकहजार योजन विस्तारवाला है। एकेन्द्रियजीवकी यह उत्कृष्ट अवगाहना कमलकी जानना चाहिये। दो इन्द्रिय जीवोंमें शङ्ख बारह योजन विस्तारवाला है, तीन इन्द्रिय जीवोंमें कुम्भी--चिंउटी तीन कोश विस्तारवाली है, चार इन्द्रिय जीवोंमें भौंरा एक योजन-चार कोश विस्तारवाला है और पाँच इन्द्रिय जीवोंमें महामच्छ एकहजार योजन विस्तार वाला है।
भावार्थ-ये उत्कृष्ट अवगाहनाके धारक जीव स्वयंभूरमण द्वीपके बीचमें