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द्वितीयाधिकार अर्थ-.-१ गति, २ इन्द्रिय, ३ काय, ४ योग, ५ वेद, ६ कषाय, ७ ज्ञान, ८ संयम, ९ दर्शन, १० लेश्या, ११ भव्य, १२ सम्यक्त्व, १३ संज्ञी और १४ आहारक जीवोंकी ये चौदह मार्गणाएं होती हैं।
भावार्थ-जिनमें अथवा जिनके द्वारा जीवोंकी खोज होती है उन्हें भागणा कहते हैं। मार्गणाओंके गति आदि चौदह भेद हैं। आगे ग्रन्थकार स्वयं ही इन मार्गणाओंका वर्णन करते हैं ॥३७॥
गतिमार्गणाका स्वरूप और भेद गतिर्भवति जीवानां गतिकर्मविषाकजा ।
श्वभ्रतिर्यग्नरामयंगतिभेदाचतुर्विधा ॥३८|| अर्थ—गति नामकर्मके उदयसे जीवको जो अवस्था होती है उसे गति कहते हैं। इसके चार भेद हैं-१ नरकगति, २ तिर्यञ्चगति, ३ मनुष्यगति और ४ देवगति । इनके लक्षण प्रसिद्ध हैं ।। ३८ [1
इन्द्रिमार्गणा और उसके भेद इन्द्रियं लिङ्गमिन्द्रस्य तच पञ्चविधं भवेत् ।
प्रत्येकं तद् द्विघा द्रव्यमावेन्द्रियविकल्पतः ॥३९।। ___ अर्थ–इन्द्र अर्थात् आत्माका जो लिङ्ग है उसे इन्द्रिय कहते हैं। इन्द्रियके स्पर्शन, रसना, नाण, चक्ष और श्रोत्रके भेदसे पाँच भेद हैं। इन पांचों इन्द्रियोंमें प्रत्येकके द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रियके भेदसे दो-दो भेद हैं ॥ ३९ ॥
द्रव्येन्त्रिपका निरूपण निर्वृत्तिश्चोपकरणं द्रव्येन्द्रियमुदाहृतम् ।
बाह्याभ्यन्तरभेदेन द्वैविध्यमनयोरपि ॥४०॥ अर्थ-निर्वृत्ति और उपकरणको द्रव्येन्द्रिय कहा गया है। निर्वृत्ति और उपकरण दोनोंके बाह्य और आभ्यन्तरके भेदसे दो-दो भेद होते हैं ।। ४० ।।
अन्तरङ्गनिवृत्तिका लक्षण नेत्रादीन्द्रियसंस्थानावस्थितानां हि वर्तनम् ।
विशुद्धात्मप्रदेशानां तत्र निवेत्तिरान्तरा ॥४१।। अर्थ-नेत्रादि इन्द्रियोंके आकारमें अवस्थित विशुद्ध आत्माके प्रदेशोंका जो इन्द्रियाकार परिणमन है उसे आभ्यन्तरनिवृत्ति कहते हैं ।। ४१ ॥